Samachar Nama
×

सच्चाई छिपाकर कोर्ट आने वालों को नहीं मिलेगी राहत, हाईकोर्ट ने खारिज की जमानत अर्जी

सच्चाई छिपाकर कोर्ट आने वालों को नहीं मिलेगी राहत: हाईकोर्ट ने खारिज की जमानत अर्जी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जो व्यक्ति अदालत में सच्चाई और तथ्य छिपाकर आता है, वह किसी भी प्रकार की न्यायिक राहत का हकदार नहीं हो सकता। अदालत ने यह सख्त टिप्पणी एक जमानत याचिका को खारिज करते हुए की, जिसमें याची ने अपने आपराधिक इतिहास को जानबूझकर छिपाया था।

यह महत्वपूर्ण आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह की एकल पीठ ने दिया। कोर्ट ने आरोपी इमरान की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए पाया कि उसने अपने खिलाफ दर्ज पूर्ववर्ती आपराधिक मामलों की जानकारी अदालत से छिपाई थी। इस आधार पर कोर्ट ने उसकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि न्यायालय के समक्ष पेश किए गए तथ्यों में पारदर्शिता अत्यंत आवश्यक है।

कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका पर लोगों का भरोसा तब और मजबूत होता है, जब अदालतें ऐसे तत्वों के खिलाफ सख्त रुख अपनाती हैं जो कानूनी प्रक्रिया के साथ धोखाधड़ी करने की कोशिश करते हैं। यदि आरोपी स्वयं अपने विरुद्ध दर्ज मामलों की जानकारी छिपाकर अदालत से राहत पाने की कोशिश करेगा, तो यह न सिर्फ कानून के साथ छल है, बल्कि न्याय की प्रक्रिया को भी दूषित करता है।

न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने अपने आदेश में कहा कि अदालत में याचिका दायर करने वाले प्रत्येक व्यक्ति की यह नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है कि वह सत्य और पूर्ण जानकारी प्रस्तुत करे। यदि किसी याचिकाकर्ता की नीयत में खोट है और वह तथ्यों को दबाकर अदालत से मनचाहा आदेश लेना चाहता है, तो अदालत उसके पक्ष में कोई रियायत नहीं बरतेगी।

इस आदेश से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि कोर्ट अब ऐसे मामलों में सख्ती से पेश आएगी, जहां याचिकाकर्ता गलत जानकारी देकर न्यायिक व्यवस्था का दुरुपयोग करने की कोशिश करते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि जमानत कोई अधिकार नहीं, बल्कि न्यायिक विवेक पर आधारित राहत है, जो उन्हीं को दी जा सकती है जो अपने आचरण में ईमानदारी दिखाते हैं।

इमरान की याचिका खारिज किए जाने के बाद इस निर्णय को कानूनी जगत में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह फैसला भविष्य में दायर की जाने वाली याचिकाओं के लिए एक नजीर के रूप में देखा जा रहा है। अदालत का यह रुख साफ करता है कि न्याय व्यवस्था में पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा सर्वोच्च प्राथमिकता है।

इस मामले ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि अदालतें केवल तथ्यों के आधार पर निर्णय करती हैं, और जिन याचिकाकर्ताओं की नीयत में खोट होती है, उन्हें किसी भी प्रकार की राहत की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

Share this story

Tags