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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने वक्फ कानून को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती, कानून को बताया संविधान विरोधी

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने हाल ही में संसद द्वारा पारित वक्फ अधिनियम को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. कासिम रसूल इलियास ने कहा कि याचिका में संसद द्वारा पारित संशोधनों पर कड़ी आपत्ति जताई गई है तथा इन्हें मनमाना और भेदभावपूर्ण बताया गया है।

बोर्ड ने जोर देकर कहा कि ये संशोधन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, साथ ही इससे सरकार की वक्फ के प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण रखने की मंशा भी उजागर होती है, ताकि मुस्लिम अल्पसंख्यकों को उनके धार्मिक दान के प्रबंधन के अधिकार से वंचित किया जा सके। याचिका में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 अंतःकरण की स्वतंत्रता, धर्म का पालन और प्रचार करने का अधिकार तथा धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थानों की स्थापना और प्रबंधन का अधिकार सुनिश्चित करते हैं।

नया कानून मुसलमानों को इन बुनियादी अधिकारों से वंचित करता है। केंद्रीय वक्फ परिषद और वक्फ बोर्ड के सदस्यों के चयन के संबंध में संशोधन इसका स्पष्ट प्रमाण है। इसके अलावा, वक्फ (दाता) के लिए पांच साल तक मुसलमान होना आवश्यक है, जो कि भारतीय कानूनी ढांचे और संविधान के अनुच्छेद 14 और 25 के साथ-साथ इस्लामी शरिया सिद्धांतों के भी खिलाफ है। डॉ. इलियास ने कहा कि याचिका में कानून को भेदभावपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद 14 के साथ असंगत बताया गया है और कहा गया है कि हिंदू, सिख, ईसाई, जैन और बौद्ध जैसे अन्य धार्मिक समुदायों के दान को दिए गए अधिकार और सुरक्षा मुस्लिम वक्फ को नहीं मिलती है।  बोर्ड ने संवैधानिक अधिकारों के रक्षक के रूप में सर्वोच्च न्यायालय से अपील की है कि वह इन विवादास्पद संशोधनों को निरस्त करे, संविधान की पवित्रता बनाए रखे तथा मुस्लिम अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन होने से बचाए।

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