पूर्वांचल और दक्षिणांचल बिजली वितरण के निजीकरण को लेकर तेज हुआ संग्राम, नियामक आयोग में आमने-सामने आए प्रबंधन और उपभोक्ता परिषद

उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण कंपनियों के निजीकरण को लेकर विवाद और टकराव लगातार तेज होता जा रहा है। बृहस्पतिवार को यह टकराव उस समय और अधिक गहरा गया जब बिजली निगम का कॉरपोरेट प्रबंधन निजीकरण से जुड़े प्रस्ताव को लेकर नियामक आयोग पहुंचा। वहीं, जैसे ही यह सूचना उपभोक्ता संगठनों तक पहुंची, उपभोक्ता परिषद भी तत्काल आयोग पहुंच गई और पूरे मामले पर तीखी आपत्ति जताई।
आयोग में चर्चा की कोशिश, लेकिन बढ़ा विरोध
बिजली निगम के अधिकारियों ने नियामक आयोग में निजीकरण से संबंधित प्रस्ताव पर चर्चा करने का प्रयास किया। सूत्रों के अनुसार, प्रबंधन यह तर्क दे रहा है कि निजीकरण से वितरण प्रणाली मजबूत होगी, तकनीकी हानियां कम होंगी और सेवा की गुणवत्ता बेहतर होगी। लेकिन इसके ठीक उलट, उपभोक्ता परिषद ने इस प्रस्ताव को “कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने की साजिश” करार देते हुए इसे एक संभावित घोटाले की संज्ञा दी।
उपभोक्ता परिषद ने दाखिल किया लोक महत्व प्रस्ताव
उपभोक्ता परिषद ने नियामक आयोग में 'लोक महत्व प्रस्ताव' दाखिल करते हुए कहा कि विद्युत वितरण जैसे बुनियादी और जन-हित के क्षेत्र को निजी हाथों में सौंपना आम जनता के हितों पर कुठाराघात है। परिषद के पदाधिकारियों ने आरोप लगाया कि निजीकरण का मकसद केवल मुनाफा कमाना है, न कि सेवा में सुधार लाना।
परिषद के एक वरिष्ठ प्रतिनिधि ने कहा,
“पूर्वांचल और दक्षिणांचल क्षेत्र की करोड़ों जनता को निजी कंपनियों के रहमो-करम पर नहीं छोड़ा जा सकता। यदि निजीकरण होता है तो बिलिंग से लेकर बिजली आपूर्ति तक सबकुछ महंगा और अनिश्चित हो जाएगा।”
सरकार के रुख को लेकर भी सवाल
वहीं, इस पूरी कवायद पर राज्य सरकार की चुप्पी पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। बिजली विभाग के उच्च अधिकारियों की सक्रियता और तेजी से चल रही फाइलों को देखकर यह माना जा रहा है कि सरकार की ओर से इस प्रस्ताव को अघोषित समर्थन प्राप्त है। हालांकि, इस पर अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
निजीकरण के पक्ष और विपक्ष
पक्ष में तर्क:
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तकनीकी दक्षता में सुधार
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वित्तीय घाटे की भरपाई
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उपभोक्ताओं को बेहतर सेवा
विपक्ष में तर्क:
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जनविरोधी कदम
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ग्रामीण और गरीब उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त भार
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मनमानी बिलिंग और शुल्क