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सात जन्मों का बंधन अब सवालों के घेरे में, रिश्तों में आ रहे कलंक ने बढ़ाई चिंता

सात जन्मों का बंधन अब सवालों के घेरे में, रिश्तों में आ रहे कलंक ने बढ़ाई चिंता

विवाह को भारतीय संस्कृति में दो आत्माओं का पवित्र मिलन और दो परिवारों का संगम माना जाता है। सदियों से यह परंपरा रही है कि पति-पत्नी का रिश्ता सात जन्मों का बंधन होता है, जिसे न केवल सामाजिक, बल्कि धार्मिक मान्यता भी प्राप्त है। लेकिन बदलते समय, जीवनशैली और सोच ने इस बंधन को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है।

आज जब लोग रिश्तों में विश्वास, समझ और त्याग की जगह शक, धोखा और स्वार्थ देख रहे हैं, तो विवाह जैसे पवित्र रिश्ते पर भी काल का साया मंडराने लगा है। पहले जहां वर-वधू की जन्मकुंडली मिलाई जाती थी, आज वहां माता-पिता उनकी ‘कर्मकुंडली’ भी खंगालने लगे हैं — यानी कौन क्या करता है, कैसे रहता है, किसके साथ रहता है, सोशल मीडिया पर कैसा व्यवहार है, आदतें क्या हैं, सोच कैसी है, इत्यादि।

रिश्तों में आ रहे धोखे, झूठ, अफेयर और विश्वासघात ने अब परिवारों को सतर्क कर दिया है। शादी के बाद जब रिश्तों में तीसरा व्यक्ति दखल देने लगे और पवित्रता को आघात पहुंचाए, तो वह रिश्ता कलंकित हो जाता है। ऐसे उदाहरण अब आम हो चले हैं, जिससे समाज में बेचैनी बढ़ गई है।

समाजशास्त्रियों और परिवार सलाहकारों का कहना है कि पहले जहां रिश्ते भावनाओं से जुड़ते थे, अब वे व्यवहारिकता, परिस्थिति और छवि से जुड़ रहे हैं। माता-पिता अब केवल लड़के या लड़की की शिक्षा, परिवार और आय नहीं देखते, बल्कि यह भी जानना चाहते हैं कि उनका व्यक्तित्व कैसा है, उनके पिछले संबंध कैसे रहे, वे नैतिक रूप से कितने मजबूत हैं, और शादी जैसे रिश्ते को कितनी गंभीरता से लेते हैं

शहरों से लेकर कस्बों और गांवों तक, विवाह से पहले चरित्र जांच की प्रवृत्ति बढ़ रही है। यह मानसिकता किसी हद तक बचाव का तरीका बन चुकी है, ताकि भविष्य में किसी भी प्रकार के धोखे या रिश्तों में दरार से बचा जा सके।

कुल मिलाकर, जहां पहले विवाह आस्था, संस्कार और विश्वास के आधार पर तय होते थे, अब उन्हें तथ्य, आचरण और पारदर्शिता के तराजू पर तोला जा रहा है। सात जन्मों के इस बंधन पर अब सिर्फ भाग्य नहीं, व्यवहार और कर्म भी निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं।

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