उत्तर प्रदेश में कम नामांकन वाले परिषदीय स्कूलों के विलय (पेयरिंग) की योजना को लेकर शिक्षक संगठनों और भावी शिक्षकों का विरोध अब व्यापक रूप ले चुका है। इस मुद्दे पर रविवार को उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के आह्वान पर बड़ी संख्या में वर्तमान और भावी शिक्षकों ने सोशल मीडिया पर 'जस्टिस फॉर स्कूल चिल्ड्रेन' (#JusticeForSchoolChildren) अभियान चलाया।
शिक्षकों और अभ्यर्थियों की सामूहिक आवाज
इस अभियान के तहत हजारों शिक्षकों और बीएड/डीएलएड प्रशिक्षुओं ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर सरकार से स्कूल विलय नीति को वापस लेने की मांग की।
अभियान में कहा गया कि यह निर्णय न सिर्फ शिक्षकों के भविष्य पर असर डालेगा, बल्कि बच्चों के अधिकारों और शिक्षा की पहुंच पर भी बड़ा असर करेगा।
क्या है पेयरिंग नीति?
शिक्षा विभाग की ओर से जारी निर्देशों के अनुसार, कम छात्र संख्या वाले परिषदीय स्कूलों को आसपास के बड़े स्कूलों में विलय किया जाएगा। इसका उद्देश्य शैक्षिक संसाधनों का समुचित उपयोग और शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाना बताया जा रहा है।
लेकिन शिक्षक संघों का कहना है कि इससे न सिर्फ बच्चों को दूरी तय करके स्कूल जाना पड़ेगा, बल्कि प्राथमिक शिक्षा से उनका लगाव भी कम होगा।
सोशल मीडिया पर उठी आवाजें
अभियान के दौरान शिक्षकों ने एक्स पर लिखा—
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"स्कूल नहीं रहेंगे, तो बच्चों को शिक्षा कैसे मिलेगी?"
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"हर गांव-हर मोहल्ले में स्कूल की जरूरत है, न कि उसे बंद करने की।"
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"शिक्षा अधिकार अधिनियम का उल्लंघन है यह नीति!"
कुछ यूजर्स ने तो नेशनल एजुकेशन पॉलिसी और आरटीई एक्ट का हवाला देते हुए सरकार पर संवैधानिक मूल्यों की अनदेखी का आरोप लगाया।
शिक्षक संघ का बयान
उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा—
“हम इस फैसले का पूरी तरह विरोध करते हैं। पेयरिंग के बहाने सरकार प्राथमिक शिक्षा को हाशिए पर धकेल रही है। हम इसे लेकर जल्द ही राज्यव्यापी प्रदर्शन और न्यायिक स्तर पर चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं।”
शिक्षा विभाग की चुप्पी
अब तक इस अभियान पर शिक्षा विभाग की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन लगातार बढ़ते विरोध को देखते हुए अधिकारियों के बीच हलचल जरूर देखी जा रही है।

