ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन की तस्करी का भंडाफोड़, दिल्ली-बिहार से हो रही सप्लाई, मुनाफे के लिए गिरोह कर रहा लोगों की सेहत से खिलवाड़

देश में अवैध रूप से ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन की तस्करी और बिक्री का गोरखधंधा तेजी से फैलता जा रहा है। दिल्ली और बिहार से चल रही इस तस्करी में गिरोह के लोग मुनाफे के लालच में न केवल कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं, बल्कि लोगों और पशुओं की सेहत के साथ भी गंभीर खिलवाड़ कर रहे हैं।
थोक में 20 रुपये, फुटकर में 200 रुपये तक की बिक्री
जानकारी के अनुसार, यह तस्कर गिरोह 100 मिलीलीटर ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन थोक में महज 20 रुपये में खरीदता है, जिसे बाद में मिलावट करके अपने नेटवर्क के जरिए 80 रुपये में आगे बेचते हैं। इसके बाद यही इंजेक्शन फुटकर में डेयरी संचालकों और किसानों को 200 रुपये तक में बेचा जाता है। यह पूरी प्रक्रिया अवैध रूप से और बिना किसी वैध अनुमति या निगरानी के अंजाम दी जाती है।
किसानों और डेयरी संचालकों को बनाया जा रहा निशाना
गिरोह के सदस्य विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में डेयरी फार्मों और पशुपालकों को निशाना बना रहे हैं। उन्हें यह कहकर बेचा जाता है कि ऑक्सीटोसिन गाय-भैंसों से अधिक मात्रा में दूध निकालने में मदद करता है। लेकिन यह इंजेक्शन न केवल पशुओं के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है, बल्कि इसके अवशेष दूध में पहुंचकर इंसानों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर डालते हैं।
मिलावट और नकली दवाओं से बढ़ रहा खतरा
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि तस्कर ऑक्सीटोसिन में मिलावट कर रहे हैं, जिससे इसके प्रभाव और दुष्प्रभाव का अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है। नकली या मिलावटी दवाओं का उपयोग पशुओं में हार्मोनल असंतुलन, गर्भपात और दीर्घकालिक बीमारियों का कारण बन सकता है। वहीं, ऐसा दूषित दूध पीने से मनुष्यों में भी हार्मोनल गड़बड़ी, प्रजनन संबंधी समस्याएं और अन्य गंभीर बीमारियां हो सकती हैं।
केंद्र सरकार ने लगाया था प्रतिबंध
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 2018 में ऑक्सीटोसिन की खुली बिक्री और उत्पादन पर रोक लगा दी थी। केवल अधिकृत संस्थाएं ही इसका उपयोग कर सकती हैं और वह भी पशु चिकित्सा की सख्त निगरानी में। बावजूद इसके, अवैध तस्करी पर पूरी तरह अंकुश नहीं लग सका है।
जांच एजेंसियों की सतर्कता जरूरी
इस मामले में स्वास्थ्य विभाग, ड्रग कंट्रोल अथॉरिटी और पुलिस को मिलकर कार्रवाई करनी होगी। सीमावर्ती जिलों और प्रमुख बाजारों में निगरानी बढ़ाने की आवश्यकता है, जहां यह इंजेक्शन चोरी-छिपे बेचे जा रहे हैं। इसके अलावा, किसानों और पशुपालकों को भी इसके दुष्परिणामों के बारे में जागरूक करने की सख्त जरूरत है।