हरदोई में शर्मनाक मामला, सहेली ने ही कराया दुष्कर्म, फिर बनाया धर्मांतरण का दबाव
उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के शाहाबाद कोतवाली क्षेत्र से एक हैरान और शर्मसार करने वाली घटना सामने आई है। यहां एक युवती की उसकी ही सहेली ने न केवल विश्वासघात किया, बल्कि डेढ़ साल तक उसे मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का शिकार भी बनवाया। पीड़िता की तहरीर पर पुलिस ने सहेली को गिरफ्तार कर लिया है, जबकि आरोपी युवक की तलाश की जा रही है।
क्या है मामला?
पीड़िता ने पुलिस को दी गई तहरीर में बताया कि उसकी सहेली ने अपने रिश्ते के भाई से उसका परिचय कराया था, लेकिन यह मुलाकात एक षड्यंत्र का हिस्सा थी। आरोप है कि युवक ने सहेली की मदद से युवती के साथ दुष्कर्म किया, और यह सिलसिला करीब डेढ़ साल तक चलता रहा।
इतना ही नहीं, आरोप यह भी है कि इस दौरान युवती पर लगातार धर्म परिवर्तन का दबाव डाला गया। उससे कहा गया कि अगर वह युवक से निकाह कर लेती है और इस्लाम धर्म अपना लेती है, तो उसे "समस्या से छुटकारा" मिल जाएगा।
पुलिस की कार्रवाई
घटना की गंभीरता को देखते हुए शाहाबाद पुलिस ने तत्काल एफआईआर दर्ज की और सहेली को गिरफ्तार कर लिया गया है। वहीं मुख्य आरोपी युवक की तलाश में पुलिस की कई टीमें लगाई गई हैं।
पुलिस अधीक्षक (एसपी) हरदोई ने मीडिया को बताया कि मामले की हर पहलू से जांच की जा रही है। पीड़िता के बयान के आधार पर पोस्को एक्ट, दुष्कर्म और जबरन धर्म परिवर्तन की धाराओं में केस दर्ज किया गया है।
सामाजिक चिंता का विषय
यह मामला न केवल विश्वासघात और यौन उत्पीड़न से जुड़ा है, बल्कि इसके साथ जबरन धर्म परिवर्तन की कोशिशों का गंभीर पहलू भी जुड़ा हुआ है। यह घटनाक्रम लव जिहाद और धार्मिक कट्टरता की आशंकाओं को बल देता है, जिस पर पहले भी कई बार समाज और सरकार चिंता जता चुके हैं।
प्रशासन का सख्त रुख
इस तरह के मामलों को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार पहले ही सख्त कानून बना चुकी है, और धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत भी मुकदमा दर्ज किया जा सकता है। पुलिस का कहना है कि आरोपी युवक के पकड़े जाने के बाद पूरे नेटवर्क और मंशा का खुलासा हो सकेगा।
पीड़िता को संरक्षण
पुलिस और प्रशासन की ओर से पीड़िता को काउंसलिंग और सुरक्षा मुहैया कराई जा रही है, ताकि वह दोबारा सामान्य जीवन जी सके।
फिलहाल, यह मामला पूरे इलाके में चर्चा का विषय बन गया है और लोगों में गहरी नाराजगी और चिंता देखी जा रही है। इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि विश्वास की आड़ में हो रहे षड्यंत्रों पर समाज और प्रशासन कितनी निगरानी रख पा रहे हैं।

