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नेहरू भवन से राहुल-प्रियंका की दूरी पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में मायूसी, नेतृत्व की अनदेखी से उठे सवाल

नेहरू भवन से राहुल-प्रियंका की दूरी पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में मायूसी, नेतृत्व की अनदेखी से उठे सवाल

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के बीच इन दिनों एक गहरी मायूसी छायी हुई है। इसका कारण है कि पार्टी के शीर्ष नेता — लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और प्रदेश महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा — लगातार लखनऊ स्थित पार्टी मुख्यालय, नेहरू भवन से दूरी बनाए हुए हैं। यह दूरी अब पार्टी कार्यकर्ताओं को कचोटने लगी है और इसके राजनीतिक निहितार्थ भी निकाले जा रहे हैं।

मंगलवार को राहुल गांधी लखनऊ पहुंचे, लेकिन कोर्ट से लौटकर सीधे वापस चले गए। बुधवार शाम वह रायबरेली पहुंचे और गुरुवार को वहां विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे। लेकिन इस दौरान भी उन्होंने प्रदेश मुख्यालय आने का कोई कार्यक्रम नहीं रखा, जिससे पार्टी के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं में गहरी निराशा है।

नेहरू भवन का महत्व और बढ़ती दूरी

नेहरू भवन कांग्रेस का प्रदेश स्तरीय प्रमुख केंद्र है, जहां से पार्टी की तमाम राजनीतिक गतिविधियां, संगठनात्मक बैठकें और रणनीति तय होती रही हैं। लेकिन लंबे समय से राहुल और प्रियंका गांधी का इससे लगातार दूरी बनाए रखना, कार्यकर्ताओं में यह संदेश दे रहा है कि प्रदेश संगठन को नेतृत्व का अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा

कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहना है कि पिछले कई चुनावों में पार्टी की हार के बावजूद, नेताओं की जमीनी संवाद में कमी और प्रदेश नेतृत्व से दूरी ने संगठन की रीढ़ कमजोर कर दी है। एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "जब कार्यकर्ता अपने शीर्ष नेता से नहीं मिल पाता, तो उसका उत्साह टूटता है।"

कई वर्ष से नहीं हुई कोई ठोस संगठनात्मक बैठक

बताया जाता है कि 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी आखिरी बार लखनऊ के नेहरू भवन आए थे। प्रियंका गांधी भी लंबे समय से केवल प्रवास या रैलियों तक ही सीमित रही हैं। अब कार्यकर्ता यह पूछने लगे हैं कि जब दिल्ली और रायबरेली के कार्यक्रम हो सकते हैं, तो लखनऊ स्थित प्रदेश मुख्यालय क्यों उपेक्षित है?

राजनीतिक जानकारों की राय

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी का नेहरू भवन न जाना केवल एक कार्यक्रम की प्राथमिकता नहीं, बल्कि इसके राजनीतिक संकेत भी हो सकते हैं। यह माना जा रहा है कि कांग्रेस नेतृत्व शायद अब उत्तर प्रदेश में नई रणनीति या ढांचे पर विचार कर रहा है, या फिर प्रदेश नेतृत्व में कोई बड़ा फेरबदल भविष्य में हो सकता है।

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के बीच इन दिनों एक गहरी मायूसी छायी हुई है। इसका कारण है कि पार्टी के शीर्ष नेता — लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और प्रदेश महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा — लगातार लखनऊ स्थित पार्टी मुख्यालय, नेहरू भवन से दूरी बनाए हुए हैं। यह दूरी अब पार्टी कार्यकर्ताओं को कचोटने लगी है और इसके राजनीतिक निहितार्थ भी निकाले जा रहे हैं।

मंगलवार को राहुल गांधी लखनऊ पहुंचे, लेकिन कोर्ट से लौटकर सीधे वापस चले गए। बुधवार शाम वह रायबरेली पहुंचे और गुरुवार को वहां विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे। लेकिन इस दौरान भी उन्होंने प्रदेश मुख्यालय आने का कोई कार्यक्रम नहीं रखा, जिससे पार्टी के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं में गहरी निराशा है।

नेहरू भवन का महत्व और बढ़ती दूरी

नेहरू भवन कांग्रेस का प्रदेश स्तरीय प्रमुख केंद्र है, जहां से पार्टी की तमाम राजनीतिक गतिविधियां, संगठनात्मक बैठकें और रणनीति तय होती रही हैं। लेकिन लंबे समय से राहुल और प्रियंका गांधी का इससे लगातार दूरी बनाए रखना, कार्यकर्ताओं में यह संदेश दे रहा है कि प्रदेश संगठन को नेतृत्व का अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा

कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहना है कि पिछले कई चुनावों में पार्टी की हार के बावजूद, नेताओं की जमीनी संवाद में कमी और प्रदेश नेतृत्व से दूरी ने संगठन की रीढ़ कमजोर कर दी है। एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "जब कार्यकर्ता अपने शीर्ष नेता से नहीं मिल पाता, तो उसका उत्साह टूटता है।"

कई वर्ष से नहीं हुई कोई ठोस संगठनात्मक बैठक

बताया जाता है कि 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी आखिरी बार लखनऊ के नेहरू भवन आए थे। प्रियंका गांधी भी लंबे समय से केवल प्रवास या रैलियों तक ही सीमित रही हैं। अब कार्यकर्ता यह पूछने लगे हैं कि जब दिल्ली और रायबरेली के कार्यक्रम हो सकते हैं, तो लखनऊ स्थित प्रदेश मुख्यालय क्यों उपेक्षित है?

राजनीतिक जानकारों की राय

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी का नेहरू भवन न जाना केवल एक कार्यक्रम की प्राथमिकता नहीं, बल्कि इसके राजनीतिक संकेत भी हो सकते हैं। यह माना जा रहा है कि कांग्रेस नेतृत्व शायद अब उत्तर प्रदेश में नई रणनीति या ढांचे पर विचार कर रहा है, या फिर प्रदेश नेतृत्व में कोई बड़ा फेरबदल भविष्य में हो सकता है।

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