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निजी एंबुलेंस सेवा बनी 'उड़ान' से भी महंगी, किराए ने उड़ाए आमजन के होश

निजी एंबुलेंस सेवा बनी 'उड़ान' से भी महंगी, किराए ने उड़ाए आमजन के होश

राजधानी लखनऊ में निजी एंबुलेंस सेवा की कीमतें अब आसमान छूने लगी हैं। सुविधा भले हवाई जहाज जैसी न हो, लेकिन किराया एयर टिकट से कहीं ज्यादा वसूला जा रहा है। मरीजों को एक शहर से दूसरे शहर तक पहुंचाने के नाम पर आमजन की जेब पर भारी बोझ डाला जा रहा है।

लखनऊ से दिल्ली की दूरी लगभग 550 किलोमीटर है। इस सफर के लिए आप हवाई जहाज में 8 से 10 हजार रुपये में रिटर्न टिकट हासिल कर सकते हैं। लेकिन अगर किसी मरीज को इसी दूरी के लिए निजी एंबुलेंस से भेजना हो, तो यह खर्च 14 हजार से लेकर 22 हजार रुपये तक पहुंच जाता है।

जानकारों के मुताबिक, साधारण एंबुलेंस, एसी एंबुलेंस और लाइफ सपोर्ट सिस्टम से लैस एंबुलेंस के किराए अलग-अलग होते हैं। जैसे-जैसे सुविधा बढ़ती है, किराया भी उसी अनुपात में बढ़ता जाता है। एंबुलेंस कंपनियां प्रति किलोमीटर के हिसाब से चार्ज लेती हैं, साथ ही अतिरिक्त स्टाफ, ऑक्सीजन सिलेंडर, मेडिकल उपकरण और ड्राइवर भत्ते के नाम पर भी रकम जोड़ी जाती है।

आम लोगों की बढ़ी मुश्किलें

स्वास्थ्य आपात स्थिति में एंबुलेंस सेवा एक जीवन रक्षक साबित होती है, लेकिन अब यही सेवा आम लोगों के लिए आर्थिक बोझ बनती जा रही है। गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए इतनी महंगी एंबुलेंस सेवा लेना बेहद मुश्किल हो गया है, खासकर जब मरीज को दूसरे शहर रेफर किया जाए।

लखनऊ निवासी सुधीर वर्मा बताते हैं कि उनके पिता की तबीयत अचानक बिगड़ गई थी और डॉक्टरों ने उन्हें तुरंत दिल्ली ले जाने की सलाह दी। ट्रेन और फ्लाइट संभव नहीं था, ऐसे में एंबुलेंस ही एकमात्र विकल्प थी। “हमें 20 हजार रुपये में साधारण एंबुलेंस मिली, जिसमें न तो डॉक्टर था, न ही कोई विशेष मेडिकल सुविधा,” वे बताते हैं।

नियमन की दरकार

स्वास्थ्य विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता निजी एंबुलेंस सेवाओं के लिए पारदर्शी दर निर्धारण की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि “आपातकालीन सेवाओं का व्यवसायीकरण नहीं होना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह एंबुलेंस सेवाओं के लिए रेट कार्ड निर्धारित करे और इनकी ऑनलाइन मॉनिटरिंग व्यवस्था लागू करे।

सरकारी एंबुलेंस विकल्प नाकाफी

हालांकि सरकार की तरफ से 102 और 108 नंबर की फ्री एंबुलेंस सेवाएं चलाई जाती हैं, लेकिन सीमित संख्या और तकनीकी कमियों के चलते गंभीर मरीजों को अक्सर निजी एंबुलेंस ही सहारा बनती हैं।निष्कर्षतः, जहां एक ओर चिकित्सा सेवा का उद्देश्य लोगों की जान बचाना है, वहीं दूसरी ओर एंबुलेंस सेवा का यह महंगा किराया आम नागरिकों के लिए एक नई चुनौती बनकर उभरा है। सरकार और स्वास्थ्य विभाग को इस दिशा में जल्द ठोस कदम उठाने की जरूरत है ताकि आपात सेवाएं आमजन की पहुंच से बाहर न हों।

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