राष्ट्रपति मुर्मू के संबोधन में झलकी सनातन संस्कृति की आभा और प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता

सोमवार को भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI) के 11वें दीक्षांत समारोह के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का संबोधन न सिर्फ छात्रों और वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणास्पद था, बल्कि उसमें भारतीय सनातन संस्कृति की गहराई, प्रकृति के प्रति करुणा और पशु कल्याण की भावना स्पष्ट रूप से परिलक्षित हुई।
राष्ट्रपति मुर्मू ने अपने वक्तव्य में गो सेवा, जीव-जंतुओं में ईश्वर की उपस्थिति और प्राणियों के कल्याण का उल्लेख करते हुए भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की याद दिलाई। उन्होंने ईशोपनिषद के एक प्रसिद्ध श्लोक का उल्लेख करते हुए बताया कि किस प्रकार हर जीव में ईश्वर का वास होता है, और यह विचार भारतीय दृष्टिकोण को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान देता है। राष्ट्रपति ने कहा कि जब हम पशुओं की सेवा करते हैं, तब हम वास्तव में प्रकृति और सृष्टिकर्ता दोनों के प्रति अपना उत्तरदायित्व निभा रहे होते हैं।
गो सेवा को उन्होंने न केवल धार्मिक भावना से जोड़ा, बल्कि इसके वैज्ञानिक और सामाजिक पक्ष की भी सराहना की। उन्होंने कहा कि गाय केवल एक पशु नहीं, बल्कि भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। इस संदर्भ में उन्होंने पशुपालन और डेयरी उद्योग की भूमिका पर भी प्रकाश डाला, जो आज देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।
राष्ट्रपति ने विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि पशु चिकित्सा विज्ञान केवल जीवों के इलाज तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक दृष्टिकोण की मांग करता है, जिसमें मानवीय संवेदनाएं, पर्यावरणीय संतुलन और जीव-जंतुओं के अधिकार शामिल हैं। उन्होंने वैज्ञानिकों से आग्रह किया कि वे अनुसंधान को केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित न रखें, बल्कि उसका लाभ ग्रामीण समाज तक भी पहुंचाएं।
उनका यह भावनात्मक और सशक्त संदेश दर्शाता है कि आधुनिक विज्ञान और प्राचीन संस्कृति के बीच सामंजस्य स्थापित कर देश को समृद्धि की ओर ले जाया जा सकता है। समारोह में उपस्थित विद्यार्थियों, वैज्ञानिकों और गणमान्य अतिथियों ने राष्ट्रपति के उद्बोधन को न केवल प्रेरणादायक बताया, बल्कि उसे एक नई सोच और दिशा देने वाला भी माना।
समारोह के अंत में राष्ट्रपति मुर्मू ने संस्थान के कार्यों की सराहना करते हुए यह विश्वास जताया कि IVRI आने वाले वर्षों में वैश्विक स्तर पर पशु चिकित्सा और अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को नई ऊँचाइयों तक पहुंचाएगा।
राष्ट्रपति का यह भाषण भारतीय संस्कृति और वैज्ञानिक चेतना का एक अद्वितीय संगम था, जो यह बताता है कि कैसे आधुनिक शिक्षा और प्राचीन ज्ञान मिलकर देश को नैतिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक रूप से सशक्त बना सकते हैं।