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पहलगाम हमले ने फिर कुरेदे कश्मीरी समाज के जख्म, बोले- कश्मीर लौटने के हमारे सपनों पर हमला हुआ

पहलगाम हमले ने फिर कुरेदे कश्मीरी समाज के जख्म, बोले- कश्मीर लौटने के हमारे सपनों पर हमला हुआ

पहलगाम में हुई आतंकी घटना ने एक बार फिर पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। लखनऊ में रह रहे कश्मीरी समुदाय के पुराने जख्म ताजा हो गए हैं। निर्दोष प्रवासियों की हत्या पर चिंता व्यक्त करते हुए कश्मीरी समुदाय के लोगों ने कहा कि बार-बार आश्वासन के बावजूद कश्मीर में स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है। आखिर ऐसी स्थिति में हम अपने घर कैसे लौट सकते हैं?

वर्ष 1989-90 में कश्मीर में आतंकवादियों के आतंक के कारण लगभग 150 परिवार लखनऊ में आकर बस गये। अनुच्छेद 370 और 35ए के तहत जम्मू-कश्मीर को दिए गए विशेष दर्जे को हटाए जाने के बाद उम्मीद जगी थी कि अब वे अपने घर लौट सकेंगे। ...लेकिन इस बार पहलगाम में पर्यटकों की नृशंस हत्या ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।

धार्मिक कट्टरता और घृणा की पराकाष्ठा
लखनऊ में पनुन कश्मीर संस्थान के सचिव रवि काचरू ने कहा कि जिस तरह से आतंकवादी संगठन ने पहलगाम में हिंदू पर्यटकों को उनके धर्म के आधार पर निशाना बनाया, वह धार्मिक कट्टरता और नफरत की पराकाष्ठा है। हम इस अमानवीय और कायराना हमले की कड़ी निंदा करते हैं। यह हमला सिर्फ कुछ व्यक्तियों पर नहीं था, बल्कि यह भारत की एकता, अखंडता और सहिष्णुता पर सीधा हमला है। उन्होंने कहा कि कश्मीरी हिंदुओं पर अत्याचार और विस्थापन पिछले 35 वर्षों से बंद नहीं हुआ है। हमने सात बार विस्थापन का दर्द झेला है। किसी भी सरकार ने इस पीड़ा का स्थायी समाधान नहीं निकाला है। हम सभी नागरिकों से अपील करते हैं कि वे एकजुट होकर इस राष्ट्र-विरोधी मानसिकता के खिलाफ आवाज उठाएं। यह सिर्फ शोक मनाने का समय नहीं है, बल्कि लड़ने का समय है। उन्होंने कहा कि कश्मीर में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। 1989-90 में हमें सबकुछ छोड़कर पलायन करने पर मजबूर होना पड़ा और तब भी किसी ने हमारी बात नहीं सुनी।

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