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सपा में संगठनात्मक संकट गहराया: गुटबाजी ने पकड़ा तूल, पदाधिकारी बैठक और कार्यक्रमों से बना रहे दूरी

 समाजवादी पार्टी में जिला और महानगर इकाई के भंग होने के बाद से संगठन में गुटबाजी खुलकर सामने आने लगी है। पार्टी के भीतर चल रही अंदरूनी कलह अब मुकदमेबाजी और आपसी मनमुटाव का रूप ले चुकी है। मुख्य पदाधिकारी एक-दूसरे से दूरी बनाए हुए हैं, जिससे पार्टी की एकजुटता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।  सूत्रों के अनुसार, कई वरिष्ठ नेताओं के बीच संवाद पूरी तरह टूट गया है, और कोई भी सार्वजनिक कार्यक्रमों में एक साथ नजर नहीं आ रहे हैं। बैठकों, कार्यक्रमों और यहां तक कि चुनावी तैयारियों में भी अधिकांश पदाधिकारी हिस्सा नहीं ले रहे हैं, जिससे कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है।  पार्टी सूत्रों का कहना है कि इकाई भंग होने के बाद से नई जिम्मेदारियों को लेकर खींचतान और गुटबाजी तेज हो गई है। हर गुट अपने पसंदीदा नेताओं को पद दिलाने के लिए सक्रिय है, जिसके चलते कार्यशैली पर भी असर पड़ रहा है।  राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि जल्द ही संगठनात्मक स्थिरता नहीं आई तो आगामी चुनावों में इसका नुकसान पार्टी को उठाना पड़ सकता है। पार्टी नेतृत्व को चाहिए कि आपसी मतभेद सुलझाकर एकजुटता की ओर कदम बढ़ाए, ताकि कार्यकर्ता भ्रमित न हों और संगठन मजबूत हो।

समाजवादी पार्टी में जिला और महानगर इकाई के भंग होने के बाद से संगठन में गुटबाजी खुलकर सामने आने लगी है। पार्टी के भीतर चल रही अंदरूनी कलह अब मुकदमेबाजी और आपसी मनमुटाव का रूप ले चुकी है। मुख्य पदाधिकारी एक-दूसरे से दूरी बनाए हुए हैं, जिससे पार्टी की एकजुटता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

सूत्रों के अनुसार, कई वरिष्ठ नेताओं के बीच संवाद पूरी तरह टूट गया है, और कोई भी सार्वजनिक कार्यक्रमों में एक साथ नजर नहीं आ रहे हैं। बैठकों, कार्यक्रमों और यहां तक कि चुनावी तैयारियों में भी अधिकांश पदाधिकारी हिस्सा नहीं ले रहे हैं, जिससे कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है।

पार्टी सूत्रों का कहना है कि इकाई भंग होने के बाद से नई जिम्मेदारियों को लेकर खींचतान और गुटबाजी तेज हो गई है। हर गुट अपने पसंदीदा नेताओं को पद दिलाने के लिए सक्रिय है, जिसके चलते कार्यशैली पर भी असर पड़ रहा है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि जल्द ही संगठनात्मक स्थिरता नहीं आई तो आगामी चुनावों में इसका नुकसान पार्टी को उठाना पड़ सकता है। पार्टी नेतृत्व को चाहिए कि आपसी मतभेद सुलझाकर एकजुटता की ओर कदम बढ़ाए, ताकि कार्यकर्ता भ्रमित न हों और संगठन मजबूत हो।

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