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सेना और पीएम के खिलाफ सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट अभिव्यक्ति की आजादी नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

सेना और पीएम के खिलाफ सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट अभिव्यक्ति की आजादी नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया पर सेना और प्रधानमंत्री के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियों को लेकर अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति सोशल मीडिया का इस्तेमाल समाज में वैमनस्यता फैलाने और सम्मानित पदों पर बैठे व्यक्तियों की छवि धूमिल करने के लिए करता है, तो यह संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की श्रेणी में नहीं आता।

न्यायालय ने यह टिप्पणी उस मामले की सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक व्यक्ति ने भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय वायुसेना के एक विंग कमांडर के खिलाफ कथित तौर पर आपत्तिजनक पोस्ट और वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किए थे। अदालत ने आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी और सख्त लहजे में कहा कि कुछ लोग सोशल मीडिया को गलत ढंग से इस्तेमाल कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में देश विरोधी मानसिकता फैलाने का माध्यम बना रहे हैं।

न्यायमूर्ति द्वारा कहा गया कि सोशल मीडिया के व्यापक प्रभाव को देखते हुए इस प्लेटफॉर्म पर साझा की गई किसी भी जानकारी का समाज पर गहरा असर पड़ता है। ऐसे में यदि कोई व्यक्ति सेना जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों या देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ बिना किसी ठोस आधार के निराधार आरोप लगाता है, तो यह न सिर्फ देश के सम्मान के खिलाफ है, बल्कि समाज की एकता और अखंडता को भी चोट पहुंचाने वाला कृत्य है।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, लेकिन यह अधिकार निरंकुश नहीं है। इसके अंतर्गत कुछ सीमाएं और उत्तरदायित्व भी तय किए गए हैं। जब कोई व्यक्ति इस स्वतंत्रता का इस्तेमाल समाज में भ्रम, नफरत या असंतोष फैलाने के लिए करता है, तो वह कानून के दायरे में आता है।

अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि सोशल मीडिया के माध्यम से दुष्प्रचार करना एक खतरनाक प्रवृत्ति बनती जा रही है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं है कि किसी को भी किसी पर भी अपमानजनक टिप्पणी करने की छूट मिल जाए, विशेष रूप से तब जब वह टिप्पणी राष्ट्रीय सुरक्षा, प्रतिष्ठान और लोकतांत्रिक संस्थानों के खिलाफ हो।

इस फैसले को न्यायिक विशेषज्ञों द्वारा एक अहम कदम माना जा रहा है, जो सोशल मीडिया पर बढ़ते दुरुपयोग और अनियंत्रित बयानबाजी पर लगाम लगाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। कोर्ट के इस निर्णय से यह संदेश भी गया है कि लोकतंत्र की मजबूती अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में है, लेकिन उसकी मर्यादा बनाए रखना उतना ही जरूरी है।

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