नौकरी छोड़कर कर रहे हैं किसानी, मां की कैंसर की बीमारी ने बदला खेती करने का नजरिया, जानिए पूरी कहानी

मेरी मां कैंसर से पीड़ित हुईं और फिर उनकी मौत भी देखी। हमेशा लगता था कि मां की बीमारी की वजह खेती में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशक और रासायनिक खाद हैं। मां की मौत से निराश होने के बजाय मैंने जैविक खेती करने का फैसला किया। आज स्थिति यह है कि गोंडा के परसापुर चरहुवां निवासी पवन सिंह और उनकी पत्नी गीता खेती से डॉलर, येन और थाई बहत में कमाई कर रहे हैं। उनके जैविक उत्पाद बुद्धा चावल यानी काला नमक चावल, कलहारी दाल, कोदो, सांवा और मोरिंगा की मांग कई देशों में है। इसकी पूर्ति ई-कॉमर्स साइट्स के जरिए हो रही है। परसापुर गोंडा के पिछड़े इलाकों में से एक माना जाता है। लेकिन इस दंपती ने यहीं से तरक्की की मिसाल कायम की है। उन्होंने खेती में ऐसी महारत हासिल की कि आज यहां की मिट्टी सोना उगल रही है। इनकी तरक्की की कहानी 28 दिसंबर 2019 से शुरू होती है। दंपती ने गोनार्ड फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी के नाम से किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनाया। आज यह एफपीओ अपनी छाप छोड़ चुका है। अब तक छह सौ से अधिक किसान इससे जुड़कर रसायन मुक्त जैविक खेती कर समृद्ध हो रहे हैं।
सालाना आय की बात करें तो पति-पत्नी 70 से 80 लाख रुपये कमा रहे हैं। उनके उत्पाद अमेजन और फ्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध हैं। वे ऑर्गेनिक इंडिया को भी जैविक उत्पाद सप्लाई कर रहे हैं। पवन कहते हैं कि गुणवत्ता ही ब्रांडिंग का आधार रही है। वे अपने जैविक उत्पादों को वैश्विक बाजार के मानकों के अनुसार प्रमाणित कराते हैं। वे सहकारी किसानों के उत्पादों का खुद निरीक्षण करते हैं। इस सफलता के पीछे उनकी मां की बीमारी और दुख छिपा है। पवन कहते हैं कि साल 2012 की बात है। मां केवलपति सिंह की तबीयत अचानक खराब हो गई। जांच में पता चला कि उन्हें लीवर कैंसर है। यह खबर उनके परिवार के लिए बड़े सदमे की तरह थी। उन्होंने हरसंभव कोशिश की। लेकिन वे अपनी मां को नहीं बचा सके। मां को कैंसर से पीड़ित देख पवन ने प्रण लिया कि अब वे खेती में कीटनाशकों या रासायनिक खादों का इस्तेमाल नहीं करेंगे। यहीं से उनकी जैविक खेती की शुरुआत हुई। आज 50 एकड़ क्षेत्र में जैविक खेती फल-फूल रही है। बुद्धा चावल की सप्लाई थाईलैंड, वियतनाम, श्रीलंका, जापान, सिंगापुर और नेपाल को भी होती है।