उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के गभाना क्षेत्र के नगला बंजारा गांव में तीन वर्ष पहले हुई महिला की हत्या के मामले में अदालत ने अहम फैसला सुनाया है। चार वर्षीय बेटे की सच्ची गवाही के आधार पर अदालत ने उसके पिता अखिलेश को उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह ऐतिहासिक निर्णय एडीजे-4 संजय कुमार यादव की अदालत ने सुनाया।
परिवार के सभी गवाह मुकरे, लेकिन बेटे ने दिलाई न्याय
यह मामला एक ऐसा उदाहरण बन गया है, जिसमें परिवार के सभी गवाहों ने अदालत में बयान से पलटकर हत्या के आरोपियों को बचाने की कोशिश की, लेकिन मासूम बेटे ने सच बोलकर अपनी मां को न्याय दिलाया। अदालत ने बेटे की गवाही को सशक्त मानते हुए कहा कि उसकी बातों में स्पष्टता, सच्चाई और किसी प्रकार की सिखाई गई बात का असर नहीं था।
अदालत ने पांच गवाहों को घोषित किया पक्षद्रोही
मुकदमे में वादी सहित कुल पांच गवाहों ने अदालत में अपने पुराने बयानों से मुकरकर झूठी गवाही दी। इसे अदालत ने गंभीरता से लेते हुए सभी को पक्षद्रोही घोषित किया और उनके खिलाफ झूठी गवाही देने के आरोप में कार्रवाई के आदेश दिए। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि ऐसे मामलों में झूठी गवाही न केवल न्याय में बाधा बनती है, बल्कि आपराधिक मामलों को कमजोर भी करती है।
क्या था पूरा मामला?
तीन साल पहले नगला बंजारा गांव में अखिलेश ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी थी। घटना के समय उनका चार वर्षीय बेटा मौके पर मौजूद था, जिसने पुलिस को बताया कि उसके पिता ने ही उसकी मां को मारा। शुरुआत में परिवार ने FIR दर्ज कराई, लेकिन जैसे-जैसे मुकदमा आगे बढ़ा, परिजन बयान से पलटने लगे।
मासूम गवाह की सत्यता ने झकझोर दिया
बेटे ने कोर्ट में बताया कि “पापा ने मम्मी को मारा था।” उसकी मासूम और स्पष्ट गवाही ने न केवल अदालत को प्रभावित किया, बल्कि यह भी दर्शाया कि बचपन की सच्चाई भी न्याय की दिशा बदल सकती है।
न्याय व्यवस्था के लिए मिसाल
अखिलेश को आजीवन कारावास (उम्रकैद) की सजा सुनाते हुए अदालत ने यह भी कहा कि बेटे की बहादुरी और सच्चाई न्याय के लिए मिसाल है। वहीं, झूठ बोलने वालों के खिलाफ कार्रवाई का निर्णय न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और सख्ती का प्रतीक माना जा रहा है।

