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लखनऊ के मंत्री नंद गोपाल गुप्ता 'नंदी' ने उठाए अफसरशाही पर सवाल, टैबलेट खरीद, मास्टरप्लान बदलाव और सब्सिडी पर जताई आपत्ति

लखनऊ के मंत्री नंद गोपाल गुप्ता 'नंदी' ने उठाए अफसरशाही पर सवाल, टैबलेट खरीद, मास्टरप्लान बदलाव और सब्सिडी पर जताई आपत्ति

उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल गुप्ता 'नंदी' ने एक बार फिर से अफसरशाही की कार्यप्रणाली पर निशाना साधते हुए कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने एक पत्र के माध्यम से विभागीय अधिकारियों के कुछ फैसलों पर स्पष्ट आपत्ति जताई है और इन निर्णयों को प्रक्रियाओं के उल्लंघन की श्रेणी में रखा है।

मंत्री ने अपने पत्र में तीन मुख्य बिंदुओं पर सवाल उठाए हैं—

  1. स्मार्टफोन की जगह टैबलेट्स की खरीद,

  2. लखनऊ औद्योगिक विकास प्राधिकरण (लीडा) के मास्टरप्लान में संशोधन,

  3. एक निजी कंपनी को एफडीआई नीति के तहत दी गई सब्सिडी।

मंत्री का आरोप: प्रक्रिया के बाहर लिए गए फैसले

मंत्री नंद गोपाल नंदी ने आरोप लगाया है कि संबंधित फैसलों में उनकी या मंत्रिपरिषद की स्वीकृति नहीं ली गई, जबकि ये सभी निर्णय नीतिगत और वित्तीय दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि अफसरशाही द्वारा नियमों की अनदेखी कर मनमाने तरीके से निर्णय लिए जा रहे हैं, जिससे सरकार की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठते हैं।

उन्होंने विशेष तौर पर टैबलेट खरीद के मामले में कहा कि जब कैबिनेट ने स्मार्टफोन की खरीद को स्वीकृति दी थी, तो फिर उसे बदलकर टैबलेट खरीदना किस आधार पर तय किया गया?

विभाग का पक्ष: प्रक्रिया का पालन हुआ

दूसरी ओर, औद्योगिक विकास विभाग ने मंत्री के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि सभी फैसले नियमानुसार प्रक्रियाओं का पालन कर और शीर्ष स्तर की अनुशंसा के बाद लिए गए हैं।

विभाग ने स्पष्ट किया है कि—

  • टैबलेट खरीद पर फैसला तकनीकी आवश्यकता और उपयोगिता को देखते हुए किया गया।

  • लीडा के मास्टरप्लान में संशोधन शहरी विकास आवश्यकताओं और निवेश आकर्षण को ध्यान में रखते हुए हुआ।

  • एफडीआई नीति के तहत दी गई सब्सिडी निवेश प्रोत्साहन नीति के अनुरूप है।

विभाग ने यह भी कहा है कि सभी प्रस्तावों को कैबिनेट की स्वीकृति के लिए भेजा गया है, और मंत्रिपरिषद की मंजूरी के बाद ही उन्हें लागू किया जाएगा।

राजनीतिक हलकों में हलचल

मंत्री के इस पत्र के बाद सरकार और नौकरशाही के बीच संवाद और समन्वय की कमी को लेकर राजनीतिक चर्चाएं शुरू हो गई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि नीतिगत फैसलों में यदि मंत्रियों को नजरअंदाज किया जा रहा है, तो यह लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए चिंताजनक है।

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