बाघ-तेंदुओं के बढ़ते हमलों के पीछे जंगल में शिकार की कमी: पूर्व वन विभागाध्यक्ष आरएस भदौरिया

हाल के वर्षों में उत्तर प्रदेश सहित देश के कई हिस्सों में बाघों और तेंदुओं के मानव बस्तियों की ओर बढ़ने की घटनाएं बढ़ी हैं। इस पर चिंता जाहिर करते हुए उत्तर प्रदेश के पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) आरएस भदौरिया ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि जंगलों के अंदर हिरण प्रजाति और जंगली सुअरों की घटती संख्या के कारण बाघ व तेंदुए भोजन की तलाश में बाहर निकलने को मजबूर हो रहे हैं।
पूर्व वन विभागाध्यक्ष का कहना है कि यह स्थिति न सिर्फ वन्यजीवों के लिए खतरनाक है, बल्कि मानव जीवन और ग्रामीण क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए भी गंभीर चुनौती बन गई है। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि जंगल में हिंसक और शाकाहारी जीवों का संतुलन बनाए रखा जाए, तो ऐसी घटनाओं पर प्रभावी नियंत्रण संभव है।
भोजन की कमी से बढ़ रही है मानवीय टकराव की घटनाएं
भदौरिया के अनुसार, वन्यजीवों खासकर बाघ और तेंदुए जैसे मांसाहारी पशुओं का मुख्य आहार हिरण, नीलगाय, जंगली सूअर और छोटे स्तनधारी होते हैं। लेकिन जंगलों में शाकाहारी प्रजातियों की आबादी में गिरावट के चलते शिकारी जानवरों को भोजन की तलाश में बाहर आना पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप वे खेतों, गांवों और यहां तक कि शहरों की सीमाओं तक पहुंच जाते हैं, जहां मनुष्यों और पालतू जानवरों पर हमले की घटनाएं होती हैं।
वन विभाग को करने होंगे ठोस कदम
आरएस भदौरिया ने वन विभाग को सुझाव दिया कि वह तत्काल सर्वे कर यह पता लगाए कि किस क्षेत्र में शाकाहारी प्रजातियों की संख्या में गिरावट आई है। इसके लिए डेटा आधारित योजना बनाई जाए और प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्वास व संरक्षण के प्रयास किए जाएं। उन्होंने कहा कि वन्यजीव संरक्षण केवल शेर-बाघों की संख्या बढ़ाने तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उनके खाद्य चक्र को बनाए रखना भी उतना ही आवश्यक है।
प्राकृतिक पारिस्थितिकी का संतुलन है समाधान
भदौरिया ने जोर देकर कहा कि प्रकृति में हर जीव का एक निश्चित स्थान और भूमिका होती है। जब हम इस संतुलन को बिगाड़ते हैं — चाहे वह अवैध शिकार हो, जंगल की कटाई हो या शाकाहारी जानवरों की अनदेखी — तो उसका असर पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ता है। यही कारण है कि अब बाघ और तेंदुए जैसे बड़े शिकारी मनुष्यों के इलाके में प्रवेश कर रहे हैं, जो दोनों के लिए ही खतरे की घंटी है।
जनजागरूकता भी है ज़रूरी
पूर्व वन विभागाध्यक्ष ने आम जनता से भी अपील की कि वे जंगलों के करीब खेती करते समय सतर्कता बरतें, पालतू पशुओं को असुरक्षित खुले स्थानों पर न छोड़ें और वन विभाग से सहयोग करें। साथ ही उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि स्कूलों और गांवों में वन्यजीवों से संबंधित जागरूकता अभियान चलाए जाएं, जिससे मनुष्य और पशु के बीच टकराव को कम किया जा सके।