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निमोनिया पीड़ित बच्चों में जानलेवा साबित हो सकता है हाइपोक्सिमिया, केजीएमयू ने विकसित किया खास मॉडल

निमोनिया पीड़ित बच्चों में जानलेवा साबित हो सकता है हाइपोक्सिमिया, केजीएमयू ने विकसित किया खास मॉडल

लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) के शोधकर्ताओं ने निमोनिया से पीड़ित बच्चों में जानलेवा स्थिति हाइपोक्सिमिया (Hypoxemia) की पहचान के लिए एक विशेष मॉडल विकसित किया है। इस अंतरराष्ट्रीय अध्ययन का उद्देश्य ग्रामीण और संसाधनविहीन क्षेत्रों में ऑक्सीमीटर की अनुपस्थिति में बच्चों की गंभीर स्थिति की पहचान करना है, जिससे समय पर इलाज संभव हो सके।

क्या है हाइपोक्सिमिया?

हाइपोक्सिमिया वह स्थिति होती है जब रक्त में ऑक्सीजन का स्तर 90 प्रतिशत से नीचे चला जाता है। यह खासकर बच्चों में निमोनिया के दौरान गंभीर रूप ले सकता है और समय पर पहचान न होने पर जानलेवा भी हो सकता है।

केजीएमयू का शोध और मॉडल

केजीएमयू के श्वसन विभाग ने अमेरिका और अन्य देशों के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर यह अध्ययन किया। इसमें लक्षणों पर आधारित एक मॉडल तैयार किया गया है जिसमें बच्चों के सांस लेने की गति, छाती धंसना, सुस्ती, बुखार, नाखून या होंठों का नीला पड़ना जैसे संकेतों को जोड़ा गया है। यदि इन लक्षणों के कुल अंक 5 से अधिक होते हैं, तो यह माना जाएगा कि बच्चे की स्थिति गंभीर है और उसे तत्काल अस्पताल ले जाने की जरूरत है।

क्यों है यह मॉडल खास?

ग्रामीण क्षेत्रों या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में अक्सर पल्स ऑक्सीमीटर जैसी जांच सुविधाएं नहीं होतीं। ऐसे में यह लक्षण-आधारित स्कोर मॉडल वहां तैनात स्वास्थ्यकर्मियों और आशा कार्यकर्ताओं के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकता है। इस मॉडल की मदद से बिना किसी उपकरण के ही बच्चे की स्थिति को गंभीर मानते हुए उसे समय रहते अस्पताल भेजा जा सकेगा।

वैश्विक मान्यता मिलने की उम्मीद

इस मॉडल को जल्द ही पब्लिक हेल्थ गाइडलाइंस में शामिल किए जाने की तैयारी चल रही है। केजीएमयू का यह प्रयास खासतौर से उन देशों के लिए लाभदायक होगा जहां बाल मृत्यु दर अधिक है और संसाधनों की कमी है।

विशेषज्ञों की राय

केजीएमयू के डॉक्टरों का कहना है कि यह मॉडल न सिर्फ मृत्यु दर कम करने में मदद करेगा, बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था को जमीनी स्तर पर मजबूत बनाएगा। “हमारा उद्देश्य यह है कि हर बच्चा समय पर पहचान और उपचार पा सके, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में रहता हो,”—ऐसा कहना है अध्ययन से जुड़े प्रमुख चिकित्सक का।

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