कानपुर की मेगा लेदर क्लस्टर परियोजना 12 साल बाद भी अधर में, जमीन अधिग्रहण बना रोड़ा

राज्य सरकार की बहुप्रतीक्षित मेगा लेदर क्लस्टर परियोजना जो 2013 में रमईपुर क्षेत्र में प्रस्तावित की गई थी, आज 12 वर्ष बाद भी ठोस रूप नहीं ले सकी है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना को 2026 तक पूर्ण कर चालू करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन आज भी यह योजना जमीन अधिग्रहण के प्रारंभिक चरण में अटकी हुई है।
परियोजना का कार्यभार संभाल रही मेगा लेदर क्लस्टर यूपी लिमिटेड के निदेशक अशरफ रिजवान अभी तक किसानों से पूरी जमीन नहीं खरीद सके हैं। सूत्रों के अनुसार, कुल आवश्यक भूमि में से नौ हेक्टेयर जमीन के अधिग्रहण में आ रही बाधाएं अब तक की सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई हैं। यही वजह है कि 12 वर्षों में भी परियोजना का कोई ठोस ढांचा खड़ा नहीं हो पाया है।
परियोजना की पृष्ठभूमि:
वर्ष 2013 में तत्कालीन सरकार ने रमईपुर में चर्म उद्योग को बढ़ावा देने और स्थानीय लोगों को रोजगार देने के उद्देश्य से इस मेगा लेदर क्लस्टर की आधारशिला रखी थी। उम्मीद की गई थी कि यह परियोजना कानपुर को एक बार फिर से देश का प्रमुख चमड़ा उत्पादन केंद्र बनाएगी। इस परियोजना के अंतर्गत आधुनिक टेनरियों, चमड़ा उत्पाद निर्माण इकाइयों, प्रशिक्षण केंद्रों और प्रदूषण नियंत्रण सुविधाओं की स्थापना की जानी थी।
जमीन अधिग्रहण में अड़चनें:
जानकारों के अनुसार, स्थानीय किसानों और ज़मीन मालिकों के साथ उचित मुआवजे को लेकर अब तक सहमति नहीं बन पाई है। नौ हेक्टेयर जमीन के टुकड़े अब तक अधिग्रहित नहीं हो सके हैं, जिससे पूरी परियोजना की प्रगति रुक गई है। निदेशक अशरफ रिजवान का कहना है कि “हम लगातार किसानों से संवाद कर रहे हैं और सरकार के निर्देशों के तहत हर संभव प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अब तक पूरी जमीन नहीं मिल सकी है।”
स्थानीय लोगों में नाराजगी:
स्थानीय ग्रामीणों और सामाजिक संगठनों में भी इस परियोजना को लेकर निराशा और नाराजगी है। उनका कहना है कि सरकार ने कई वादे किए थे—रोजगार, सड़क, जल निकासी और उद्योगिक विकास के—लेकिन अब तक कुछ भी धरातल पर नजर नहीं आया। ग्रामीणों का आरोप है कि केवल कागज़ी कार्रवाई और निरीक्षणों तक सीमित रह गई है यह योजना।
प्रशासन की भूमिका पर सवाल:
हालांकि जिला प्रशासन ने कई बार परियोजना को लेकर समीक्षा बैठकें की हैं, लेकिन व्यवहारिक समाधान और तेजी से फैसले न होने के कारण कोई ठोस पहल नहीं हो सकी है। जानकारों का कहना है कि यदि जमीन अधिग्रहण का मुद्दा जल्द हल नहीं हुआ तो 2026 तक परियोजना के पूर्ण होने की संभावना बेहद क्षीण है।