पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित परिवारों को मिलेगा भूमि स्वामित्व, CM योगी ने दिए ठोस कार्रवाई के निर्देश
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को एक अहम और मानवीय पहल करते हुए राज्य में पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) से विस्थापित होकर बसे परिवारों को भूमि स्वामित्व का अधिकार देने के लिए ठोस कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री ने यह निर्णय एक उच्च स्तरीय बैठक के दौरान लिया, जिसमें संबंधित विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी रही।
सीएम योगी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह महज भूमि के हस्तांतरण का मामला नहीं है, बल्कि उन हजारों परिवारों के जीवन संघर्ष को सम्मान देने का अवसर है, जिन्होंने देश की सीमाओं के पार से भारत में शरण ली और वर्षों से पुनर्वास की बाट जोह रहे हैं।
“यह शासन की नैतिक जिम्मेदारी है”
मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देशित किया कि ऐसे सभी विस्थापित परिवारों की पहचान कर उन्हें शीघ्र भूमि स्वामित्व से संबंधित प्रमाणपत्र प्रदान किए जाएं। उन्होंने कहा, “इन परिवारों ने न सिर्फ अपने घर-बार छोड़े, बल्कि अपने अतीत, पहचान और जीवन का एक बड़ा हिस्सा गंवा दिया। आज हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम उन्हें सम्मानपूर्वक पुनर्वास दें।”
सीएम योगी ने इस दौरान यह भी जोड़ा कि प्रशासन को इन परिवारों के साथ संवेदनशील और सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिए। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि प्रक्रिया में पारदर्शिता और मानवीय दृष्टिकोण अपनाना अनिवार्य है।
कई जिलों में बसे हैं विस्थापित परिवार
पूर्वी पाकिस्तान से 1971 के युद्ध और उससे पहले के घटनाक्रमों के दौरान लाखों हिंदू परिवार भारत में विस्थापित होकर आए थे। इनमें से हजारों परिवार उत्तर प्रदेश के गोंडा, बहराइच, लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, और कुछ अन्य जिलों में बसे हुए हैं। हालांकि वर्षों से वे इन जमीनों पर रह रहे हैं, लेकिन अब तक उन्हें भूमि का वैध स्वामित्व नहीं मिला था।
ऐतिहासिक कदम की दिशा में पहल
मुख्यमंत्री का यह कदम न केवल प्रशासनिक निर्णय है, बल्कि यह सामाजिक न्याय और मानवता की दृष्टि से भी ऐतिहासिक माना जा रहा है। अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि वे ऐसे परिवारों के भूमि संबंधित दस्तावेजों की समीक्षा करें, पुराने अभिलेखों को खंगालें और एक पारदर्शी प्रक्रिया के तहत उन्हें मालिकाना हक दिया जाए।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
सरकार के इस निर्णय की राजनीतिक और सामाजिक हलकों में सराहना हो रही है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह कदम वर्षों से उपेक्षित समुदाय को मुख्यधारा में लाने में सहायक होगा।

