हरिद्वार से डाक कांवड़ लेकर दौड़ रहे शिवभक्त, औघड़नाथ मंदिर तक सात घंटे में करेंगे 150 किमी की दूरी तय
सावन के पवित्र महीने में शिवभक्ति का जुनून अपने चरम पर है। हरिद्वार से गंगाजल लेकर चलने वाली डाक कांवड़ में इस बार शिवभक्तों का उत्साह, ऊर्जा और समर्पण अद्भुत देखने को मिल रहा है। हर की पौड़ी से लेकर यूपी के बाबा औघड़नाथ मंदिर तक करीब 150 किलोमीटर की दूरी को शिवभक्त दौड़ते हुए तय कर रहे हैं। यह संपूर्ण यात्रा मात्र सात से साढ़े सात घंटे के भीतर पूरी की जा रही है, जो श्रद्धा और शक्ति का बेजोड़ संगम है।
डाक कांवड़ की विशेषता यह है कि इसमें श्रद्धालु सामान्य कांवड़ियों की तरह पैदल नहीं चलते, बल्कि गंगाजल को दौड़ते हुए मंदिर तक पहुंचाते हैं। इस दौड़ में भक्तों की टोलियां 30 से 50 लोगों की होती हैं, जो पूरी यात्रा के दौरान एक संगठित टीम की तरह काम करती हैं। हर टोली में अलग-अलग जिम्मेदारियां बांटी गई हैं – कोई जल लेकर दौड़ता है, तो कोई वाहनों में चल रही जरूरी वस्तुओं और सहायता का प्रबंध देखता है।
इन डाक कांवड़ यात्राओं की तैयारियां किसी बड़ी यात्रा या धार्मिक आयोजन से कम नहीं हैं। प्रत्येक टोली के साथ सुरक्षा गार्ड, मेडिकल किट, पानी, एनर्जी ड्रिंक, बर्फ, प्राथमिक उपचार टीम और रसद सामग्री की गाड़ियों का काफिला चलता है। हर कुछ किलोमीटर पर विश्राम और सेवा केंद्र भी बनाए गए हैं, जहां जरूरत पड़ने पर थके हुए कांवड़ियों को राहत दी जाती है।
जानकारी के अनुसार, एक डाक कांवड़ यात्रा पर लगभग 80 हजार से लेकर दो लाख रुपये तक का खर्च आता है। भक्तगण इस राशि को आपस में मिलकर जुटाते हैं या फिर स्थानीय श्रद्धालुओं और समाजसेवियों से सहयोग लेते हैं। यह खर्च यात्रा के समुचित प्रबंधन, स्वास्थ्य सेवाओं, भोजन, वाहन व्यवस्था और पूजा-सामग्री पर होता है।
डाक कांवड़ यात्रियों की रफ्तार इतनी तेज होती है कि वह सामान्य यात्री वाहनों से भी तेज गति से मंजिल तक पहुंच जाते हैं। रास्ते भर ‘बोल बम’, ‘हर-हर महादेव’ और ‘बाबा के दीवाने दौड़े चले आ रहे हैं’ जैसे जयघोष से वातावरण भक्तिमय बना रहता है। यह न केवल एक धार्मिक अनुभव है, बल्कि एक मानसिक और शारीरिक साधना भी है, जिसे शिवभक्त पूरे अनुशासन और नियमों के साथ निभाते हैं।
हर की पौड़ी से औघड़नाथ मंदिर तक की यह यात्रा जहां शिवभक्तों की अडिग आस्था और संकल्प को दर्शाती है, वहीं समाज में संगठन, सेवा और संयम का अद्वितीय उदाहरण भी पेश करती है। बाबा भोलेनाथ के प्रति इस निष्ठा ने सावन के इस माह को एक बार फिर विशेष और पवित्र बना दिया है।

