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राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में छात्रों का संकट, सुविधाओं के बावजूद नहीं बढ़ रही छात्रसंख्या

राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में छात्रों का संकट, सुविधाओं के बावजूद नहीं बढ़ रही छात्रसंख्या

उत्तर प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों के बावजूद राजकीय माध्यमिक विद्यालयों (हाईस्कूल व इंटर) में छात्रों की संख्या घटती जा रही है। यह संकट अब केवल बेसिक शिक्षा तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि माध्यमिक शिक्षा विभाग के स्कूलों में भी छात्रों की कमी गंभीर चिंता का विषय बनती जा रही है।

सुविधाएं बढ़ीं, लेकिन छात्र नहीं

पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने माध्यमिक विद्यालयों में आधारभूत ढांचे को बेहतर करने के लिए कई योजनाएं चलाई हैं। स्कूलों में स्मार्ट क्लास, कंप्यूटर लैब, पुस्तकालय, शौचालय और पेयजल जैसी सुविधाएं विकसित की गई हैं। साथ ही छात्रवृत्तियां, मुफ्त पाठ्यपुस्तकें और यूनिफॉर्म भी उपलब्ध कराई जा रही हैं।

इसके बावजूद, सरकारी हाईस्कूल और इंटर कॉलेजों में छात्रों का नामांकन व उपस्थिति निरंतर गिरावट की ओर है। कई जिलों में तो हालात ये हैं कि एक-एक कक्षा में गिनती के छात्र ही रह गए हैं।

निजी स्कूलों की ओर झुकाव

इस संकट का एक बड़ा कारण निजी स्कूलों की ओर अभिभावकों और छात्रों का रुझान है। सरकारी स्कूलों की छवि आज भी गुणवत्तापरक शिक्षा के मामले में पिछड़ी मानी जाती है। माता-पिता अपनी हैसियत से ऊपर जाकर भी बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने को प्राथमिकता दे रहे हैं।

वहीं कई सरकारी स्कूलों में शिक्षक पदों की कमी, नियमित कक्षाएं न चलने की शिकायतें, और विद्यार्थियों में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिहाज से विश्वास की कमी भी इसके पीछे अहम कारण माने जा रहे हैं।

विभागीय प्रयासों को नहीं मिल रही सफलता

माध्यमिक शिक्षा विभाग ने छात्रों को आकर्षित करने के लिए जागरूकता अभियान, स्कूल चलो अभियान, और नवाचार आधारित शिक्षण विधियों को अपनाने की शुरुआत की है। कई जिलों में "मिशन प्रेरणा" और "समृद्ध स्कूल अभियान" जैसे कार्यक्रमों का विस्तार भी हुआ है, लेकिन अभी तक इन प्रयासों का अपेक्षित प्रभाव देखने को नहीं मिला है।

विशेषज्ञों की राय

शिक्षाविदों का मानना है कि समस्या केवल सुविधा की नहीं है, बल्कि गुणवत्ता, विश्वास और प्रतिस्पर्धा की भावना से जुड़ी है। जब तक सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता और अनुशासन निजी स्कूलों के समकक्ष नहीं होंगे, तब तक इस प्रवृत्ति को पलटना मुश्किल होगा।

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