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छांगुर के दरबार में बदली सोच और पहचान, धर्मांतरण के पीछे न तो मजबूरी, न ही धर्म से मोहभंग

छांगुर के दरबार में बदली सोच और पहचान: धर्मांतरण के पीछे न तो मजबूरी, न ही धर्म से मोहभंग

उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में हाल ही में सामने आए धर्मांतरण के मामलों ने एक बार फिर सामाजिक और धार्मिक विमर्श को तेज कर दिया है। इसमें खास बात यह रही कि जिन लोगों ने हिंदू धर्म से इस्लाम धर्म स्वीकार किया, उन्होंने किसी दबाव, कठिनाई या मजबूरी के चलते नहीं, बल्कि अपनी सोच और संगत में बदलाव के कारण यह कदम उठाया।

चाहे वह नीतू हो, नवीन हो या हाजिरा, इन सभी ने खुलकर स्वीकार किया कि उनके जीवन में कोई विशेष समस्या नहीं थी, न ही हिंदू धर्म से कोई असंतोष। इसके बावजूद उन्होंने अपनी इच्छा से धर्म बदला और अब वे छांगुर बाबा के दरबार के शागिर्द बन चुके हैं।

ध्यान देने वाली बात यह है कि धर्म परिवर्तन के इन मामलों में न तो किसी लालच की बात सामने आई है और न ही किसी सामाजिक बहिष्कार की। बल्कि इन लोगों ने बताया कि “अब हमें सुकून और शोहरत दोनों हासिल है”

सोच में बदलाव, संगत का असर

धर्म परिवर्तन करने वालों में अधिकतर युवाओं का कहना है कि उन्होंने नई संगत में खुद को मानसिक रूप से अधिक शांत और आत्मिक रूप से संतुष्ट महसूस किया। उन्होंने बताया कि छांगुर के दरबार से जुड़ने के बाद उनका जीवन बदल गया। वे नियमित रूप से दरगाह में जाते हैं, धार्मिक क्रियाओं में भाग लेते हैं और खुद को एक नए आत्मविश्वास के साथ देख रहे हैं।

न कोई दबाव, न ही लालच

पुलिस और प्रशासन की प्राथमिक जांच में यह सामने आया है कि इन मामलों में जबरन धर्मांतरण जैसा कोई तत्व नहीं मिला है। हालांकि, स्थानीय हिंदू संगठनों ने इसे "धार्मिक भ्रम फैलाने की साजिश" बताया है और प्रशासन से विस्तृत जांच की मांग की है।

सामाजिक स्तर पर हलचल

इस घटनाक्रम ने स्थानीय स्तर पर हलचल मचा दी है। कई लोगों को यह चिंता है कि यदि ऐसे धर्मांतरण बिना किसी ठोस कारण के होते रहे तो समाज में धार्मिक असंतुलन और आपसी विश्वास में दरार पैदा हो सकती है। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में व्यक्ति को अपनी आस्था चुनने की आज़ादी है और इसे व्यक्तिगत निर्णय के रूप में देखना चाहिए।

छांगुर का दरबार—एक नई पहचान का मंच

छांगुर बाबा के दरबार को लेकर कहा जाता है कि यहां पर जाति, धर्म और भाषा की दीवारें नहीं होतीं। लोग यहां आकर आध्यात्मिक ऊर्जा और सामाजिक अपनापन महसूस करते हैं। शायद यही कारण है कि कुछ लोग अपने पुराने धर्म को छोड़कर इस रास्ते को अपना रहे हैं।

हालांकि प्रशासनिक स्तर पर इस मामले की गहराई से जांच की जा रही है, लेकिन इससे एक बड़ा सवाल यह जरूर उठता है—क्या हमारी सामाजिक व्यवस्था और धार्मिक शिक्षा इतनी कमजोर हो गई है कि व्यक्ति स्वयं अपनी पहचान और आस्था को बदलने का निर्णय ले रहा है?

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