प्रयागराज में भीम आर्मी समर्थकों का तांडव, पुलिस पर हमला और सरकारी संपत्ति को किया नुकसान

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में रविवार को अचानक बवाल भड़क उठा, जब भीम आर्मी प्रमुख और सांसद चंद्रशेखर आज़ाद को कौशांबी जाने से रोका गया। इसके विरोध में उनके समर्थक उग्र हो गए और करीब दो घंटे तक शहर की सड़कों पर जमकर तांडव किया। इस दौरान सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया, पुलिस पर हमले हुए और आमजन में दहशत का माहौल बन गया।
घटना प्रयागराज के करछना क्षेत्र की है, जहां चंद्रशेखर आज़ाद अपने कार्यक्रम के सिलसिले में कौशांबी जा रहे थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें सुरक्षा कारणों से प्रयागराज में ही रोक दिया। इसी बात से नाराज़ उनके समर्थक भड़क गए और देखते ही देखते बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए। भीड़ ने डायल 112 की गाड़ी को पलट दिया, पुलिस टीमों पर पथराव किया और रोडवेज की बसों व निजी वाहनों में तोड़फोड़ की। कई बाइकों को आग के हवाले कर दिया गया।
पुलिस पर सुनियोजित हमला
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, प्रदर्शनकारियों की भीड़ अचानक उग्र हुई और उन्होंने पहले से मौजूद पुलिस बल पर पत्थरों की बौछार कर दी। हालात इतने बिगड़ गए कि पुलिस को अतिरिक्त बल बुलाना पड़ा। मौके पर RAF और PAC की तैनाती की गई, जिसके बाद किसी तरह स्थिति को काबू में किया गया।
पुलिस अधीक्षक प्रयागराज ने बताया, “स्थिति अब नियंत्रण में है। जिन लोगों ने हिंसा की है, उनकी पहचान की जा रही है और CCTV फुटेज के आधार पर कार्रवाई की जाएगी। उपद्रवियों के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं।”
भीम आर्मी का पक्ष
उधर, भीम आर्मी की ओर से बयान आया है कि चंद्रशेखर आज़ाद को गलत तरीके से रोका गया और उनके कार्यक्रम में बाधा डालने की साजिश रची गई। पार्टी नेताओं ने पुलिस की कार्रवाई को “तानाशाही रवैया” करार दिया और कहा कि यह दलित नेतृत्व को दबाने की कोशिश है।
प्रशासन की सख्त चेतावनी
प्रयागराज प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि कानून व्यवस्था से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उपद्रव फैलाने वालों की पहचान कर उनके खिलाफ सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। साथ ही यह भी कहा गया है कि किसी भी राजनैतिक कार्यक्रम के लिए पूर्व अनुमति अनिवार्य है और उसे लेकर सुरक्षा व्यवस्था के तहत फैसले लिए जाते हैं।
आम जनता में भय का माहौल
इस घटना के चलते आम नागरिकों में भय और असुरक्षा का माहौल देखा गया। कई लोग बीच रास्ते में फंसे रह गए, बाजारों को अचानक बंद करना पड़ा और अफरा-तफरी मच गई।
यह घटना एक बार फिर से यह सवाल खड़ा करती है कि राजनीतिक प्रदर्शन और कानून व्यवस्था के बीच संतुलन कैसे कायम किया जाए, ताकि आम जनता की सुरक्षा बनी रहे और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का पालन भी हो।