इलाहाबाद हाईकोर्ट से 54 फीट ऊंचा ताजिया निकालने की याचिका पर राहत नहीं, पहले सक्षम प्राधिकारी से अनुमति लेने का निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुहर्रम के मौके पर 54 फीट ऊंचा ताजिया निकालने की अनुमति की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर कोई राहत नहीं दी है। अदालत ने याचिका को यह कहते हुए निस्तारित कर दिया कि याचिकाकर्ता ने ताजिया के आकार को लेकर किसी तरह की रोक या प्रतिबंध से संबंधित कोई लिखित दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया है।
न्यायालय ने साफ कहा कि केवल "आशंका" के आधार पर अदालत का रुख करना उचित नहीं है। यदि प्रशासन द्वारा किसी प्रकार की मनाही नहीं की गई है और न ही कोई ठोस दस्तावेज प्रस्तुत किए गए हैं, तो यह याचिका समय से पूर्व और अव्यवस्थित मानी जाएगी।
न्यायमूर्ति की एकल पीठ ने याचिकाकर्ता को यह निर्देश दिया कि वह पहले संबंधित सक्षम प्राधिकारी, जैसे जिला प्रशासन या पुलिस प्रशासन, के समक्ष विधिवत आवेदन दे और यदि वहां से कोई आदेश प्राप्त होता है, तो उस पर आगे विचार किया जा सकता है।
याचिका में मुहर्रम के दौरान 54 फीट ऊंचा ताजिया निकालने की अनुमति मांगी गई थी। याचिकाकर्ता ने आशंका जताई थी कि प्रशासन ऊंचे ताजिये को सुरक्षा या अन्य कारणों से रोक सकता है, इसी आशंका के आधार पर अदालत में याचिका दाखिल की गई थी। हालांकि कोर्ट ने इस दलील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जब तक कोई वास्तविक आदेश या प्रतिबंध सामने न आए, तब तक हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
कोर्ट का यह फैसला इस बात को रेखांकित करता है कि धार्मिक आयोजनों के संबंध में किसी भी प्रकार की अनुमति की प्रक्रिया प्रशासनिक स्तर पर तय की जाती है और पहले उस प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक होता है। अदालत तभी हस्तक्षेप करती है जब किसी के मौलिक अधिकारों का वास्तविक उल्लंघन होता है या कोई प्रशासनिक आदेश विधि के विरुद्ध हो।
फिलहाल, हाईकोर्ट के इस निर्णय के बाद याचिकाकर्ता को अब प्रशासन के समक्ष आवेदन देना होगा और वहीं से स्थिति स्पष्ट होगी कि उन्हें ताजिया के आकार को लेकर अनुमति मिलेगी या नहीं।
यह आदेश धार्मिक आयोजनों के आयोजनकर्ताओं को यह सीख भी देता है कि किसी भी सार्वजनिक आयोजन के लिए उचित प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है और केवल संभावनाओं के आधार पर कोर्ट की शरण लेना व्यावहारिक नहीं होता।