अनुकंपा नियुक्ति पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी: कहा, यह कोई वंशानुगत अधिकार नहीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि यह कोई विरासत या वंशानुगत अधिकार नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य केवल उस स्थिति में मृतक कर्मचारी के परिजनों को तात्कालिक आर्थिक सहायता देना है, जब परिवार पूरी तरह से असहाय हो जाए।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुकंपा नियुक्ति नियमों और तय प्रक्रियाओं के तहत ही दी जा सकती है, न कि महज सहानुभूति या पारिवारिक रिश्ते के आधार पर। न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की एकल पीठ ने इस टिप्पणी के साथ नियमों को दरकिनार कर अनुकंपा नियुक्ति पाने वाले एक याची की याचिका को खारिज कर दिया।
कोर्ट का स्पष्ट संदेश:
"अनुकंपा नियुक्ति का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि किसी कर्मचारी की आकस्मिक मृत्यु के बाद उसका परिवार भुखमरी की कगार पर न आ जाए। यह नीति न्याय नहीं बल्कि सहानुभूति आधारित राहत है, जिसे नियमों के अनुसार ही लागू किया जाना चाहिए।"
याची ने तर्क दिया था कि उसे पारिवारिक पृष्ठभूमि और मृतक कर्मचारी का पुत्र होने के आधार पर सेवा में लिया जाना चाहिए, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
इस फैसले का व्यापक असर:
यह फैसला उन तमाम मामलों में नज़ीर बन सकता है जहां लोग अनुकंपा नियुक्ति को अपना अधिकार मानकर अदालतों का रुख करते हैं। कोर्ट ने साफ कर दिया कि सिर्फ मृतक कर्मचारी का वारिस होना पर्याप्त नहीं, जब तक कि नियमों के तहत पात्रता सिद्ध न हो।
यह निर्णय सरकार और सार्वजनिक संस्थानों के लिए भी एक संकेत है कि अनुकंपा नियुक्ति देते समय नियमों का पालन अनिवार्य है, और कोई भी अपवाद न्यायसंगत नहीं होगा।

