Uttar-pradesh: अखिलेश यादव के फैसले ने बीजेपी को फंसा दिया, सपा चीफ के बयान से मिले ये संकेत

समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हाल ही में पार्टी के तीन विधायकों — अभय सिंह, राकेश प्रताप सिंह और मनोज पांडेय — को पार्टी से निष्कासित करने के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया दी है। यह घटनाक्रम उत्तर प्रदेश की राजनीति में नई हलचल लेकर आया है, क्योंकि इस फैसले से पार्टी में आंतरिक तनाव के संकेत मिलते हैं और साथ ही भाजपा के साथ गठबंधन के संदर्भ में भी राजनीतिक खेल तेज होने की आशंका बढ़ी है।
अखिलेश यादव की प्रेस वार्ता: "टेक्निकल इश्यू खत्म"
लखनऊ में एक प्रेस वार्ता के दौरान अखिलेश यादव ने पत्रकारों से बातचीत में बताया कि पार्टी से इन तीन विधायकों को निकालने का कारण तकनीकी है। उन्होंने कहा कि इन विधायकों का "टेक्निकल इश्यू" अब खत्म हो चुका है, जिसका मतलब यह है कि अब वे मंत्री बन सकते हैं। अखिलेश ने स्पष्ट किया कि इस तकनीकी अड़चन के कारण ये तीनों विधायक मंत्री पदों से वंचित थे।
उन्होंने कहा, "इनको कहा जा रहा था कि आप अभी सपा में हैं, अगर मंत्री बनेंगे तो अपनी संस्था छोड़नी पड़ेगी और फिर चुनाव कराने होंगे। इसलिए मंत्री नहीं बन पा रहे थे। मैंने उनका यह टेक्निकल रीजन खत्म कर दिया है।"
सपा का रणनीतिक कदम: बागियों को बाहर निकालना
अखिलेश यादव ने बताया कि मंत्री पद सबको मिलना था और आश्वासन भी दिया गया था। तीन विधायकों के मंत्री बनने से बाकी बागियों को हटाने की योजना बनाई गई है। उन्होंने कहा, "तीन निकाले और बाकी क्यों नहीं निकाले? अगर ये तीन मंत्री बन गए तो बाकी लोगों को भी हटाना होगा। बीजेपी की जिम्मेदारी है कि इन लोगों को मंत्री बनाएं।"
यह बयान साफ तौर पर भाजपा पर दबाव बनाने का प्रयास माना जा सकता है कि वह बागी विधायकों को मंत्री पद देकर पार्टी में दरार को गहरा करे। यह रणनीति आगामी चुनावों और गठबंधन की राजनीति में सपा की ताकत को बनाए रखने के लिए अहम हो सकती है।
भाजपा सांसद संजय सेठ पर तंज
इस मौके पर अखिलेश यादव ने भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सेठ पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा, "बागियों को कितना पैकेज मिला, इस पर चर्चा नहीं करना चाहता, लेकिन किसी के नाम में ही 'पैकेज' हो तो सोचो कितना पैकेज देगा... सेठ... जो सेठ है, उस पर कुछ भी हो सकता है।"
यह बयान भाजपा के खिलाफ तीखे तेवर को दर्शाता है और साफ संकेत देता है कि सपा इस मुद्दे को लेकर भाजपा को घेरने की रणनीति बना रही है। यह राजनीतिक दबाव बढ़ाने की एक कोशिश है ताकि भाजपा बागी विधायकों के प्रति अपनी भूमिका स्पष्ट करे।
राज्यसभा चुनावों में क्रॉस वोटिंग और बागी विधायकों का मामला
इस पूरे विवाद की जड़ फरवरी 2024 में संपन्न हुए राज्यसभा चुनावों में है, जब समाजवादी पार्टी के सात विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की थी। यह घटना पार्टी के लिए एक बड़ा झटका था। लगभग 15 महीने बाद, पार्टी ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए तीन बागी विधायकों को पार्टी से निष्कासित करने का कदम उठाया।
यह निर्णय सपा की आंतरिक अनुशासन कायम रखने की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है। साथ ही, यह भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर सपा की स्थिति को भी स्पष्ट करता है कि वह बगावत को बर्दाश्त नहीं करेगी और अपने पक्ष में दबाव बनाना चाहेगी।
राजनीतिक प्रभाव और आगे का हालात
अखिलेश यादव के इस फैसले के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीतिक हवा में हलचल बढ़ गई है। इस फैसले से पार्टी में एक सशक्त संदेश गया है कि अनुशासनहीनता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वहीं, भाजपा पर भी दबाव बढ़ गया है कि वह बागी विधायकों के मंत्री बनने के वादे को पूरा करे।
आने वाले समय में यह देखना होगा कि भाजपा इस दबाव को कैसे संभालती है और क्या वह बागी विधायकों को मंत्री बनाकर गठबंधन को मजबूत करती है या फिर इस मुद्दे को लेकर सियासी लड़ाई और तीखी हो जाएगी। वहीं, समाजवादी पार्टी भी अपनी रणनीति के तहत आगामी चुनावों की तैयारी में जुटी है और अपने संगठन को मजबूत बनाने के लिए जरूरी कदम उठा रही है।