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आगरा की शान 'पच्चीकारी' को मिला जीआई टैग, पारंपरिक शिल्पकला को मिली वैश्विक पहचान

आगरा की शान 'पच्चीकारी' को मिला जीआई टैग, पारंपरिक शिल्पकला को मिली वैश्विक पहचान

ऐतिहासिक शहर आगरा की प्रसिद्ध पारंपरिक शिल्पकला पच्चीकारी (मार्बल इनले वर्क) को अब आधिकारिक तौर पर भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication - GI) टैग की मान्यता मिल गई है। यह खबर न केवल शिल्पकारों के लिए बड़ी राहत लेकर आई है, बल्कि इससे इस अद्वितीय कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने का रास्ता भी खुल गया है।

क्या है पच्चीकारी कला?
पच्चीकारी को आम भाषा में मार्बल इनले वर्क भी कहा जाता है। यह वही बारीक शिल्पकला है जो ताजमहल की दीवारों पर देखने को मिलती है। इसमें संगमरमर पर रंगीन पत्थरों को तराश कर जड़ाई की जाती है, जिससे बेहद खूबसूरत और टिकाऊ डिज़ाइन तैयार होते हैं। यह कला मुगल काल से जुड़ी हुई है और पीढ़ियों से आगरा के कारीगर इसे संरक्षित करते आ रहे हैं।

भाग ‘ए’ की प्रक्रिया पूरी, भाग ‘बी’ की ओर कदम
जीआई टैग की प्रक्रिया में दो चरण होते हैं—भाग 'ए' और भाग 'बी'
अभी भाग 'ए' की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, जिसमें यह प्रमाणित किया गया है कि पच्चीकारी कला आगरा की विशिष्ट विरासत है और इसका उद्गम स्थल यही है। इसके तहत इस कला को एक विशिष्ट पहचान दी गई है और यह पंजीकरण अब कानूनी रूप से मान्य हो गया है।

अब भाग 'बी' की प्रक्रिया शुरू की गई है, जिसके तहत इस कला से जुड़े शिल्पकारों, उद्यमियों और उत्पादकों को पंजीकरण कराया जाएगा। भाग 'बी' के पूर्ण होते ही कलाकार और उद्यमी अपने उत्पादों पर आधिकारिक रूप से GI टैग का प्रयोग कर सकेंगे, जिससे उनके उत्पादों को बाज़ार में एक विशिष्ट पहचान और मूल्य मिलेगा।

शिल्पकारों और उद्योग जगत में खुशी की लहर
इस मान्यता के बाद पच्चीकारी से जुड़े कारीगरों और कारोबारियों में उत्साह का माहौल है। उनका मानना है कि GI टैग मिलने से न केवल नकली उत्पादों पर रोक लगेगी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में उनकी पहुंच भी बढ़ेगी। GI टैग उनके उत्पादों की गुणवत्ता, मौलिकता और परंपरागत महत्व का प्रमाण होगा।

संस्कृति और व्यापार दोनों को मिलेगा बल
विशेषज्ञों का मानना है कि पच्चीकारी को GI टैग मिलने से आगरा के पर्यटन और हस्तशिल्प उद्योग को बड़ा प्रोत्साहन मिलेगा। यह पहल स्थानीय कलाकारों की आर्थिक स्थिति सुधारने, युवाओं को रोजगार के अवसर देने और भारतीय परंपरागत कलाओं को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने में सहायक सिद्ध होगी।

यह GI टैग न सिर्फ आगरा की पारंपरिक कला को संरक्षित करेगा, बल्कि उसे अगली पीढ़ियों तक ले जाने का मार्ग भी प्रशस्त करेगा। अब बस भाग 'बी' की प्रक्रिया के पूर्ण होने का इंतजार है, जिसके बाद आगरा की यह ऐतिहासिक कला पूरे विश्व में 'आधिकारिक पहचान' के साथ चमकेगी।

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