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पत्नी से विवाद के बाद पिता ने दो बेटों को गंगा में फेंका, खुद भी कूदा — 2 किलोमीटर दूर जिंदा मिला

 पत्नी से विवाद के बाद पिता ने दो बेटों को गंगा में फेंका, खुद भी कूदा — 2 किलोमीटर दूर जिंदा मिला  वाराणसी, उत्त

जिले के चिरईगांव इलाके में रविवार को एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई, जिसने पूरे क्षेत्र को स्तब्ध कर दिया। स्थानीय निवासी दुर्गा सोनकर ने अपने दो मासूम बेटों को गंगा नदी में फेंक दिया और इसके बाद खुद भी नदी में छलांग लगा दी। यह खौफनाक कदम उसने अपनी पत्नी से हुए विवाद के बाद उठाया।

घटना रविवार दोपहर की है। जानकारी के अनुसार, दुर्गा सोनकर का अपनी पत्नी से किसी बात को लेकर तीखा झगड़ा हुआ था। गुस्से में वह अपने दोनों बेटों को लेकर घर से बाहर निकल गया और चुपचाप गंगा नदी के किनारे जा पहुंचा। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, पहले उसने दोनों बच्चों को नदी में फेंका और फिर खुद भी कूद गया।

घटना की जानकारी मिलते ही स्थानीय पुलिस और गोताखोरों की टीम मौके पर पहुंची। बच्चों की तलाश के लिए रेस्क्यू अभियान चलाया गया, लेकिन समाचार लिखे जाने तक दोनों बच्चों का कोई सुराग नहीं मिल पाया है।

हैरानी की बात यह रही कि दुर्गा सोनकर को घटना स्थल से लगभग दो किलोमीटर दूर मुस्तफाबाद रेतापार के पास जीवित पाया गया। उसे नदी से बाहर निकाला गया और तत्काल पूछताछ के लिए थाने लाया गया। शुरुआती पूछताछ में दुर्गा ने स्वीकार किया कि उसने पत्नी से हुए झगड़े के बाद यह आत्मघाती कदम उठाया। पुलिस के अनुसार, वह मानसिक रूप से परेशान लग रहा था।

पुलिस अधिकारियों ने बताया कि फिलहाल दुर्गा सोनकर को मेडिकल परीक्षण के लिए भेजा गया है और उसके बयान दर्ज किए जा रहे हैं। वहीं, बच्चों की तलाश के लिए एनडीआरएफ और SDRF की टीमों को भी लगाया गया है। नदी में तेज बहाव और गहराई के कारण सर्च ऑपरेशन में दिक्कतें आ रही हैं, लेकिन तलाश जारी है।

घटना के बाद गांव में मातम का माहौल है। आसपास के लोग इस घटना से गहरे सदमे में हैं और घटना को लेकर कई सवाल भी उठा रहे हैं। ग्रामीणों के अनुसार, दुर्गा पिछले कुछ समय से पारिवारिक कलह से परेशान चल रहा था, लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि वह इतना बड़ा कदम उठा लेगा।

एसपी ग्रामीण और चिरईगांव थाना प्रभारी ने मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया और लोगों से अपील की कि अफवाहों से बचें और पुलिस को सही जानकारी दें, ताकि बच्चों की तलाश में मदद मिल सके।

यह घटना एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि पारिवारिक कलह और मानसिक तनाव कैसे एक व्यक्ति को अंधे मोड़ पर ले जा सकता है, जिसकी कीमत मासूम जानों को चुकानी पड़ सकती है।

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