3 बदमाश, 3 बैग और 3 गोली...वाराणसी में तड़तड़ाई गोलियां, पुलिस ने फिल्मी अंदाज में किया एनकाउंटर

जुर्म की जो फिल्मी कहानी हम आपके साथ खेल रहे हैं, वह एनकाउंटर के बाद ही होती है। फिल्म की शूटिंग के लिए एक लोकेशन चुनी जाती है, शायद यह वही जगह हो जहां वह एनकाउंटर हुआ हो। शूटिंग शुरू होने से पहले फिल्म के तीनों अहम किरदारों का मेकअप किया जाता है। पैरों में कपड़े बांधे जाते हैं, क्योंकि पैरों में गोली लगी थी। इसके बाद तीनों किरदारों को बारी-बारी से जमीन पर लिटाया जाता है। फिर तीनों के पास एक-एक बैग रखा जाता है। और अब बस इंतजार था- लाइट, कैमरा और एक्शन का। इसके बाद ओके बोला जाता है और फिल्म की शूटिंग शुरू हो जाती है।
यूपी के पुलिसकर्मियों ने शायद किसी पुलिस ट्रेनिंग अकादमी से ट्रेनिंग ली है। वाराणसी के कुछ पुलिसकर्मियों को देखकर तो यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये सभी एनएसडी से पास आउट कलाकार हैं। एनएसडी बोले तो नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा। मजाक नहीं कर रहा हूं। अब जो फिल्म की कहानी आपको बताने जा रहा है, उसे देखने के बाद आप भी इसके लाइट, कैमरा, एक्शन और डायलॉग के मुरीद हो जाएंगे। तो चलिए चलते हैं यूपी पुलिस की लेटेस्ट फिल्म तारेन की शूटिंग लोकेशन पर। लोकेशन है वाराणसी का एक सुनसान इलाका।
टेक वन सीन ऐसा है जैसे कोई व्यक्ति जमीन पर लेटा हुआ है। पाड़ा क्या अमर से लेता हुआ है। उसके बाएं पैर में घुटनों के नीचे एक नीला कपड़ा बंधा हुआ है। सिर के बराबर में बाईं तरफ एक बैग रखा हुआ है। आसपास कुछ पुलिसवाले हैं। चूंकि ये एक एक्शन सीन है, इसलिए पुलिसवाले के हाथ में पिस्तौल है। और उसी पिस्तौल को तानते हुए जमीन पर लेटे व्यक्ति से बैग खोलने को कहता है। अब इस पूरे सीन को डायलॉग से समझते हैं। सीन के इर्द-गिर्द के डायलॉग सुनना न भूलें, खासकर ओपनिंग लाइन। कैमरे के पीछे खड़ा कैमरामैन जैसे ही ओके कहता है, सीन शुरू हो जाता है।
शूटिंग शुरू होने से पहले ही शायद उस बदमाश ने अपने डायलॉग अच्छी तरह याद कर लिए थे। इसलिए वो दूसरा टेक देता है। बाएं पैर में गोली लगने के बाद एक अपराधी के बैग से चोरी का सामान कितनी आसानी से निकल आता है, वो अपना गुनाह कबूल करता है। अब बारी है अगले सीन की। इस सीन में गोली लगने के बाद जमीन पर पड़े एक अपराधी को खड़ा होना था। दो पुलिसवाले उसे खड़ा होने में मदद करते हैं। अब सीन कुछ ऐसा है कि बैग के बाद उसके कपड़ों की तलाशी ली जाती है।
इस फिल्म में इस अपराधी की भूमिका बस इतनी ही थी। लेकिन अगले लोकेशन पर जाने से पहले कुछ देर के लिए यह याद रखना होगा कि जामा की तलाशी के दौरान उसके बाएं पॉकेट से एक राउंड यानी कारतूस के साथ एक चेन मिली थी। कारतूस वाली बात याद रखिए। अगली फिल्म देखते समय यह काम आएगी, तो चलिए दूसरे लोकेशन पर चलते हैं।
दूसरा लोकेशन पहले लोकेशन की तरह ही है, कैमरे का एंगल थोड़ा बदला हुआ है और किरदार कैमरे में कैद है। जमीन पर पड़ा अपराधी एक्टर पहले वाले से कहीं बेहतर एक्टर लग रहा है। चारों तरफ पुलिस है। पुलिस के पास हथियार हैं। लेकिन चारों तरफ से पुलिस से घिरे होने और दाएं पैर में गोली लगने के बावजूद अपराधी आराम से सिर के नीचे हाथ रखकर लेटा हुआ है। इस सीन में भी उसके बराबर में एक बैग रखा हुआ है। बैग अभी भी बंद है। चेक भी नहीं खोला गया। क्योंकि चेकिंग कैमरे पर करनी थी। इस सीन की शुरुआत भी उसके पिता का नाम पूछने से होती है. इस बैग से भी काफी सामान बरामद होता है. बंदा जमीन पर घायल पड़ा है लेकिन पुलिस की मासूमियत को देखते हुए उससे बैग भी खोले जा रहे हैं और सामान भी निकाला जा रहा है. अब इस सीन को समझिए.
तो ये दूसरा सीन भी लगभग पहले सीन जैसा ही था. पहले वाले के बाएं पैर में गोली लगी थी, उसके दाएं पैर में. उसके पास भी एक बैग था, इसके पास भी एक बैग है. उस बेग में फोरी का माल, उस बेग में फोरी का माल है बस फर्क इतना था कि इस सीन में अपराधी के पास एक कट था, जिसे गोल घेरे में दिखाया गया था. अब पहले सीन की तरह बैग की तलाशी के बाद उसके कपड़ों की भी तलाशी लेनी थी. जामा तलाशी का ये सीन अब शुरू होता है.
इस आरोपी का साथ दो पुलिसवाले भी देते हैं. अब जामा तलाशी शुरू होती है. उसकी जेब में मोबाइल, पर्स, पैसे सब मौजूद हैं. लेकिन तलाशी लेने वाला पुलिसवाला शायद सीन को ठीक से समझ नहीं पाया. सारी जेबें खंगालने के बाद भी उसे एक चीज नहीं मिली. जिसे डायरेक्टर कैमरे पर दिखाना चाहता था. फिर डायरेक्टर को खुद बोलना पड़ता है- ई-वाला जेब से निकालो, खोलो, इसमें क्या है? और डायरेक्टर के ये कहते ही अचानक उसी जेब से एक जिंदा कारतूस निकल आता है.
तो इसके साथ ही दूसरा सीन भी पूरा हो गया. सबसे पहले दोनों अपराधियों को हिरासत में लिया गया वो भी कैमरे पर. क्योंकि शूटिंग चल रही थी. फिर से आपको याद दिलाया जाता है, बस सर्च वाली बात याद है. पहले वाले की जेब में भी एक राउंड था. लेकिन उसके पास कोई हथियार नहीं था. दूसरे वाले के पास भी एक जिंदा कारतूस था. लेकिन उसके पास एक कट जरूर था. अब चलते हैं तीसरे सीन पर. लोकेशन थोड़ी बदली हुई है. लेकिन ज्यादा दूर नहीं, बस पास में.
कसम से इस बार अपराधी की एक्टिंग का कोई जवाब नहीं. जैसे ही कैमरा उसकी तरफ घूमता है. पुलिस वाले ने पूछा. ऐसा लग रहा था जैसे भाई सिर्फ डायलॉग बोलने के लिए लेटा हुआ था. कैमरे में आने से पहले वो शांत होकर जमीन पर आराम भी कर रहा था. इस भाई के सिर पर एक बैग भी रखा हुआ था. और घटनास्थल के अनुसार, उसके दाहिने पैर में घुटने के नीचे एक कपड़ा बंधा हुआ था, क्योंकि गोली लगी थी। अब लगभग वही दृश्य दोहराया जा रहा है। उसी थैले को उठाया जाता है, उसी से खोला जाता है और उसी तरीके से थैले में करीने से रखा गया सामान बरामद किया जाता है। डॉ.
यलोग भी लगभग पहले दो सीन जैसा ही था। पहले दो किरदारों की तरह अब बारी थी उस अपराधी के कपड़ों की तलाशी लेने की। उसका साथ दो पुलिसवाले भी देते हैं। और फिर शुरू होती है जेबों की तलाशी। कसम फिल्म की कहानी लिखने वाले ने कमाल की कहानी लिखी है। हैरानी की बात ये है कि उसकी जेब से जिंदा कारतूस निकला। अब याद कीजिए शुरुआत में आपसे क्या कहा गया था। ये कारतूस वाली बात। ये कोई बढ़िया नहीं है। तीनों की जेब से एक-एक कारतूस निकला।
और इसी के साथ इस फिल्म की शूटिंग खत्म हो जाती है। तीनों अपराधियों को जब्त या जमा कर दिया जाता है। अब यहां से पैकअप करें। लेकिन पैकअप करने से पहले आपको बता दें कि वहां जो शूट हो रहा था उसके पीछे की असली कहानी क्या है? तो पूरी कहानी खुद वाराणसी के पुलिस अफसरों ने बताई।
दरअसल, वाराणसी के प्रसिद्ध संकटमोचन मंदिर के महंत के घर चोरी की घटना हुई थी। इस चोरी में महंतजी के घर पर काम करने वाले कुछ कर्मचारी भी शामिल थे। बताया जाता है कि चोर अपने साथ सैकड़ों साल पुराने हीरे, जवाहरात और माणिक चुराकर ले गए थे। जिसकी कीमत कई करोड़ रुपए हो सकती है। उस चोरी के बाद चोरों को पकड़ने के लिए वाराणसी पुलिस ने चोरी में शामिल चोरों से मुठभेड़ की थी। अब मुठभेड़ वाला सीन शूट नहीं हो सकता था। इसलिए मुठभेड़ के बाद का यह सीन शूट किया गया ताकि आप सभी देख सकें। फिल्म कैसी बनी और फिल्म की कहानी कैसी है, यह बताया जाएगा।