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102 वर्षीय शांति देवी बनीं डिजिटल गुरु, ठेठ अवधी में जीवन के पाठ सिखाकर जीतीं लोगों का दिल

102 वर्षीय शांति देवी बनीं डिजिटल गुरु, ठेठ अवधी में जीवन के पाठ सिखाकर जीतीं लोगों का दिल

उम्र महज़ एक संख्या है—इस कहावत को सही मायनों में चरितार्थ कर रही हैं बेलखरनाथ धाम के पास खूंझीकल गांव की 102 वर्षीय शांति देवी। कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा, लेकिन आज इंटरनेट की दुनिया में वह एक प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं। ठेठ अवधी बोली में जीवन के अनुभव साझा कर रहीं दादी शांति देवी आज लाखों लोगों की ‘डिजिटल गुरु’ बन गई हैं। सोशल मीडिया पर उनके वीडियो देख हर उम्र के लोग उनके 'अनुभव पाठशाला' का हिस्सा बन रहे हैं।

दादी शांति देवी की जिंदगी सादगी, संघर्ष और अनुभवों से भरी रही है। खेत-खलिहान, चूल्हा-चौका और गांव की मिट्टी से जुड़े रहने वाली यह महिला अब स्मार्टफोन के कैमरे के सामने जब अपनी बात कहती हैं तो शब्द नहीं, मानो अनुभव बोलते हैं। जीवन के जमीनी सच, रिश्तों की मिठास और मूल्यों की सीख को वह इतने सहज और सरल ढंग से कहती हैं कि देखने-सुनने वाला हर व्यक्ति जुड़ाव महसूस करता है।

उनके वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे यूट्यूब, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर तेजी से वायरल हो रहे हैं। ठेठ देशी अंदाज में कही गई बातों में वह कभी जीवन की सच्चाई समझाती हैं तो कभी संस्कार और नैतिकता का पाठ पढ़ाती हैं। उनकी बातें किसी किताब से नहीं, अनुभव की गहराई से निकली होती हैं—इसलिए सीधे दिल को छूती हैं।

शांति देवी के परिवार के लोग बताते हैं कि शुरुआत में उन्होंने शौक के तौर पर दादी के कुछ वीडियो मोबाइल से रिकॉर्ड कर सोशल मीडिया पर डाले थे। लेकिन देखते ही देखते लोग उनसे जुड़ते चले गए। लोग न केवल उनके वीडियो पसंद कर रहे हैं, बल्कि कमेंट्स में जीवन के प्रति उनकी सोच की सराहना भी कर रहे हैं।

दादी का मानना है कि आज की युवा पीढ़ी तेज जरूर है, लेकिन धैर्य, आदर्श और अनुभव की पूंजी धीरे-धीरे पीछे छूटती जा रही है। इसी को लेकर वह वीडियो के ज़रिए नई पीढ़ी को जोड़ने और मार्गदर्शन देने की कोशिश करती हैं। उनका एक वाक्य जो सबसे ज्यादा लोकप्रिय हो रहा है, वह है—"जियत रहो, लेकिन जियत में सीखत रहो।"

गांव की गलियों से निकलकर डिजिटल दुनिया तक अपनी पहचान बना चुकीं शांति देवी यह साबित कर रही हैं कि ज्ञान किसी स्कूल या किताब का मोहताज नहीं होता। जीवन का हर दिन एक पाठशाला है, और अनुभव उसका सबसे बड़ा शिक्षक।

शांति देवी की यह यात्रा न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह भी संदेश देती है कि तकनीक और परंपरा का संगम अगर सही तरीके से किया जाए, तो वह समाज को नई दिशा दे सकता है। अब यह 102 वर्षीय दादी डिजिटल युग की नई आवाज बनकर सबको सिखा रही हैं—कैसे जिया जाए एक सादा, संपूर्ण और मूल्यवान जीवन।

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