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मोहर्रम की शुरुआत के साथ ही राजधानी जयपुर में मातम और अकीदत का माहौल, 300 से अधिक ताजियों का जुलूस निकलेगा

मोहर्रम की शुरुआत के साथ ही राजधानी जयपुर में मातम और अकीदत का माहौल, 300 से अधिक ताजियों का जुलूस निकलेगा

इस्लामी नववर्ष की शुरुआत के साथ ही मातम और ग़म का महीना मोहर्रम आरंभ हो गया है। माह-ए-मोहर्रम का चांद नजर आते ही राजधानी जयपुर की फिजा में ग़म, श्रद्धा और अकीदत का माहौल दिखने लगा है। इमाम हुसैन की शहादत की याद में शहर के अलग-अलग इलाकों में ताजिए बनना शुरू हो गए हैं।

शहर के इमामबाड़ों, मोहल्लों और मुस्लिम बहुल इलाकों में ताजिए की तैयारी जोरों पर है। शोक की इस अवधि में हर तरफ इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद करते हुए मातमी जुलूस, मजलिसें, और सीना ज़नी जैसे आयोजन किए जा रहे हैं। जयपुर का ऐतिहासिक सोने-चांदी का ताजिया भी इस बार खास आकर्षण का केंद्र रहेगा, जो हर वर्ष की तरह इस बार भी पूरी शानो-शौकत से निकाला जाएगा।

जानकारी के अनुसार, मोहर्रम की प्रमुख तारीखों पर इमामबाड़े से घाटगेट कब्रिस्तान तक करीब 300 से अधिक छोटे-बड़े ताजियों का जुलूस निकलेगा। इसमें विभिन्न क्षेत्रों से बनाए गए ताजिए शामिल होंगे, जिन्हें श्रद्धालु अपने-अपने मोहल्लों से लेकर घाटगेट तक ले जाएंगे। इस दौरान रास्तों में मजलिसों का आयोजन भी किया जाएगा, जिसमें इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की करबला में दी गई कुर्बानी को याद किया जाएगा।

सुरक्षा और यातायात के खास इंतजाम
प्रशासन और पुलिस विभाग ने मोहर्रम के जुलूस को लेकर खास सुरक्षा इंतजाम किए हैं। संवेदनशील इलाकों में अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती की गई है। वहीं, जुलूस के दौरान यातायात को सुचारु बनाए रखने के लिए रूट डायवर्जन की योजना भी तैयार की जा रही है।

ताजिए की शिल्पकला भी आकर्षण का केंद्र
इस बार ताजियों में आकर्षक सजावट और पारंपरिक शिल्प का खास ध्यान रखा जा रहा है। लकड़ी, थर्माकोल, कागज़ और धातु से बने ताजिए अपनी अलग-अलग बनावट और खूबसूरती से लोगों का ध्यान खींचते हैं। कई मोहल्लों में बच्चों और युवाओं ने मिलकर खास ताजिए तैयार किए हैं।

अकीदतमंदों में उत्साह, लेकिन ग़म का माहौल बरकरार
मोहर्रम कोई त्योहार नहीं, बल्कि एक ग़म का महीना है, जिसमें मुस्लिम समाज विशेषकर शिया समुदाय इमाम हुसैन की करबला में दी गई शहादत को याद करता है। इस महीने के पहले 10 दिन विशेष रूप से शोक और इबादत में गुजारे जाते हैं।

अंतिम दिन यानी 10वीं मोहर्रम (यौम-ए-आशूरा) को जुलूसों के साथ ताजिए दफन किए जाएंगे। उस दिन भी बड़ी संख्या में अकीदतमंद घाटगेट कब्रिस्तान पहुंचेंगे।

जयपुर का मोहर्रम न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह शहर की गंगा-जमुनी तहजीब की एक मिसाल भी है, जहां सभी धर्मों के लोग इस आयोजन की मर्यादा को बनाए रखने में सहयोग करते हैं।

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