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चीफ सेक्रेटरी से नहीं मिलने देने पर फूटा ग्रामीणों का गुस्सा, कलेक्ट्रेट के बाहर ताला लगाकर जताया प्रशासन पर रोष

चीफ सेक्रेटरी से नहीं मिलने देने पर फूटा ग्रामीणों का गुस्सा, कलेक्ट्रेट के बाहर ताला लगाकर जताया प्रशासन पर रोष

राजस्थान के मुख्य सचिव सुधांश पंत के कोटपूतली दौरे के बाद स्थानीय प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। प्रशासन पिछले तीन दिनों से मुख्य सचिव के आगमन की तैयारियों में जुटा था, जिसमें रातभर सड़कों की मरम्मत और डिवाइडरों पर पेड़ लगाने का काम शामिल था। हालांकि इस दौरे की जानकारी मीडिया और आम जनता से गुप्त रखी गई।

ग्रामीणों को सीएस से नहीं मिलने दिया गया
प्रशासन इतना भड़क गया कि मुख्य सचिव से मिलने और ज्ञापन देने आए ग्रामीणों को सीएस से मिलने तक नहीं दिया गया। इसके बाद गुस्साए ग्रामीणों ने कलेक्ट्रेट कार्यालय में जमकर हंगामा किया। गुस्साए ग्रामीणों ने कार्यालय का मुख्य गेट बंद कर प्रदर्शन किया। उन्होंने प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी भी की और सभी प्रशासनिक अधिकारियों को ताले में बंद कर दिया। इतिहास में शायद यह पहला मौका है जब जनता ने सभी प्रशासनिक अधिकारियों को ताले में बंद कर दिया।

ग्रामीणों ने कलेक्ट्रेट के गेट पर ताला जड़ा
जानकारी के अनुसार, जब ग्रामीण अपनी समस्या लेकर कलेक्ट्रेट पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें रोक दिया। संगठनों के प्रतिनिधियों को कलेक्ट्रेट में बुलाकर एक कमरे में बैठा दिया गया, जबकि मुख्य सचिव बैठक कर कलेक्ट्रेट से चले गए और ग्रामीण इंतजार करते रहे। जब ग्रामीणों को पता चला कि मुख्य सचिव उनसे मिले बिना ही चले गए हैं तो वे भड़क गए। ग्रामीणों ने कलेक्ट्रेट के मुख्य गेट पर ताला जड़ दिया और विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। यह शायद पहला ऐसा मामला था, जब पूरे जिले के लगभग सभी अधिकारियों को मुख्य गेट पर ताला जड़कर कलेक्ट्रेट में नजरबंद कर दिया गया। विरोध प्रदर्शन में सीमेंट फैक्ट्री के खिलाफ धरने पर बैठे ग्रामीण, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को चतुर्भुज गांव में शिफ्ट करने की मांग करने वाले ग्रामीण और डीजे कोर्ट की स्थापना की मांग कर रहे कोटपूतली अभिभाषक संघ के सदस्य शामिल थे। बाद में काफी जद्दोजहद के बाद अधिकारियों और आमजन के बीच बैठक हुई। कलेक्टर कल्पना अग्रवाल ने कहा कि यह पूरा मामला गलतफहमी के कारण हुआ। अधिकारियों की ऐसी कोई मंशा नहीं थी कि वे ग्रामीणों को मुख्य सचिव से मिलने से रोकें।

3 घंटे बाद सुलझा विवाद
करीब 3 घंटे तक चला पूरा मामला अधिकारियों की समझाइश के बाद शांत हुआ। इस घटना ने प्रशासन की पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि प्रशासन ने उनकी समस्याओं को नजरअंदाज कर अपनी नाकामियों को छिपाने की कोशिश की है।

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