‘अरावली बचाओ मुहिम’ को मिला अशोक गहलोत का समर्थन, वीडियो में देखें बोले– ये पहाड़ियां एनसीआर के लिए फेफड़ों की तरह
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अब ‘अरावली बचाओ मुहिम’ के समर्थन में खुलकर सामने आ गए हैं। अरावली पर्वत श्रृंखला के संरक्षण को लेकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर गहरी चिंता जताई है। गहलोत ने कहा कि अरावली की पहाड़ियां और यहां के जंगल न केवल राजस्थान बल्कि एनसीआर और आसपास के शहरों के लिए “फेफड़ों” का काम करते हैं। ये पहाड़ियां धूल भरी आंधियों को रोकती हैं और प्रदूषण कम करने में अहम भूमिका निभाती हैं।
अशोक गहलोत ने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि जब अरावली के रहते हुए भी एनसीआर और आसपास के इलाकों में प्रदूषण की स्थिति इतनी गंभीर बनी हुई है, तो अगर अरावली नहीं रही तो हालात कितने भयावह होंगे, इसकी कल्पना मात्र से ही डर लगता है। उन्होंने इसे पर्यावरण और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य से जुड़ा गंभीर मुद्दा बताया।
दरअसल, अरावली पर्वत श्रृंखला को लेकर सुप्रीम कोर्ट के 20 नवंबर 2025 के फैसले के बाद यह विवाद और गहरा गया है। इस फैसले के अनुसार, जमीन से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली भू-आकृति को ही अरावली पहाड़ी माना जाएगा। पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि इस नए मानक के लागू होने से अरावली की 90 प्रतिशत से अधिक पहाड़ियां संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगी। इसका सीधा असर खनन गतिविधियों, निर्माण कार्यों और पर्यावरणीय संतुलन पर पड़ेगा।
गहलोत ने कहा कि अरावली केवल पहाड़ियों की एक श्रृंखला नहीं है, बल्कि यह एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच है, जो राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली-एनसीआर को रेगिस्तान के विस्तार से बचाता है। उन्होंने आशंका जताई कि यदि अरावली का संरक्षण कमजोर पड़ा तो थार मरुस्थल का विस्तार तेज होगा, भूजल स्तर और नीचे जाएगा और जल संकट और गहरा सकता है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने केंद्र और राज्य सरकारों से अपील की कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के व्यापक प्रभावों पर गंभीरता से विचार करें और अरावली के संरक्षण के लिए ठोस नीति बनाएं। उन्होंने कहा कि विकास जरूरी है, लेकिन विकास के नाम पर प्रकृति का विनाश किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से ही पर्यावरण कार्यकर्ताओं, सामाजिक संगठनों और आम नागरिकों में नाराजगी देखी जा रही है। कई संगठनों ने ‘अरावली बचाओ’ अभियान तेज कर दिया है और सरकार से इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका या वैकल्पिक कानूनी रास्ते अपनाने की मांग की जा रही है। सोशल मीडिया पर भी अरावली के संरक्षण को लेकर लगातार आवाज उठ रही है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अशोक गहलोत के समर्थन में उतरने से यह मुहिम और मजबूत होगी। आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर दबाव बढ़ने की संभावना है। फिलहाल, अरावली का भविष्य एक बार फिर राष्ट्रीय बहस का केंद्र बन गया है।

