राजस्थान के शक्करगढ़ में स्थापित 251 किलो पारे से निर्मित पारदेश्वर महादेव शिवलिंग, श्रद्धालुओं के लिए आस्था का नया केंद्र
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के शक्करगढ़ कस्बे में स्थित श्री संकट हरण हनुमत धाम मंदिर में स्थापित 251 किलो पारे से निर्मित पारदेश्वर महादेव शिवलिंग अब न केवल राजस्थान, बल्कि देशभर के शिवभक्तों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बन चुका है। श्रावण माह में यहां शिव भक्तों का मेला जैसा माहौल रहता है, और मंदिर में दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगती हैं।
पारद (पारे) से बने शिवलिंग का महत्व
शिवलिंग के अनेक रूप होते हैं, लेकिन पारे से निर्मित शिवलिंग को दुर्लभतम माना जाता है। 251 किलो का पारद शिवलिंग अब तक राजस्थान में स्थापित किया गया सबसे भारी शिवलिंग है। यह दिखने में छोटा जरूर लगता है, लेकिन इसका वजन सुनकर कोई भी हैरान हो सकता है। पारा (पारद) एक तरल धातु है, और इसे ठोस रूप में शिवलिंग के रूप में परिणत करना शास्त्र सम्मत प्रक्रिया और तपस्वी संन्यासियों का कार्य माना जाता है।
श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र
यह शिवलिंग श्रद्धालुओं के बीच विशेष आस्था का केंद्र बन चुका है। सावन मास में, जब शिव भक्त जलाभिषेक और पूजा-अर्चना के लिए मंदिरों में आते हैं, तो यहां की विशेषता और पवित्रता उन्हें आकर्षित करती है। पारद शिवलिंग की पूजा करने से शिव के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है, और इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालु मानते हैं कि उनका जीवन संतान सुख, स्वास्थ्य, समृद्धि और मानसिक शांति से भर जाता है।
पारद शिवलिंग की निर्माण प्रक्रिया
पारा (पारद) से शिवलिंग बनाने की प्रक्रिया को तपस्वी और साधकों के द्वारा ही संभव माना जाता है, क्योंकि यह एक कठिन और शास्त्र सम्मत कार्य है। इस प्रक्रिया में विशेष ऊर्जा और तप की आवश्यकता होती है, और इसलिए इसे बनाने का कार्य बहुत ही श्रद्धा और विश्वास से किया जाता है। पारद से बने शिवलिंग की विशेषता यह है कि इसे पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
शिवलिंग को पारद से बनाना न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। यह दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति में धातुओं और उनके प्रभाव को समझने का एक गहरा विज्ञान था। पारद से बने शिवलिंग के दर्शन से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और यह व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में अग्रसर करता है।

