
र्षा ऋतु के सौंदर्य को प्रदर्शित करने के लिए जवाहर कला केंद्र में आयोजित मल्हार महोत्सव का स्वागत बरसते बादलों ने किया। यह महोत्सव भारतीय संगीत और कला के प्रेमियों के लिए एक अद्वितीय अनुभव साबित हुआ, जहां वर्षा की रिमझिम बूँदों के बीच शास्त्रीय संगीत की ध्वनियाँ गूंज उठीं।
महोत्सव के पहले दिन की शुरुआत बांसुरी वादन के maestro अनिल जांगिड़ द्वारा की गई। उनकी बांसुरी की ध्वनि में एक खास तरह का आकर्षण था, जो श्रोताओं को एक नई धुन में लहराने के लिए प्रेरित कर रहा था। वहीं, अमीरुद्दीन खान ने सारंगी वादन से महोत्सव की शोभा और बढ़ाई। उनके वादन में सारंगी की मधुरता ने सुनने वालों के दिलों को छू लिया और इसने संगीत की असल परंपरा को सजीव रूप से प्रस्तुत किया।
महोत्सव का दूसरा दिन और भी शानदार होने वाला था। इस दिन उस्ताद अनवर हुसैन ने संतूर वादन के माध्यम से संगीत का एक अलग ही रंग दिखाया। उनके संतूर के सुरों में एक गहराई थी, जो श्रोताओं को ध्यानमग्न कर देती थी। इसके बाद पंडित कैलाश चंद्र मोठिया और योगेश चंद्र मोठिया ने वायलिन पर जुगलबंदी पेश की, जिसमें उनके बीच की तालमेल और समरसता ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। साथ ही, कैलाश रंजनी बेला ने भी अपनी प्रस्तुतियों से महोत्सव को और भी आकर्षक बना दिया।
मल्हार महोत्सव का यह आयोजन संगीत और कला प्रेमियों के लिए एक संगीतमहाल साबित हुआ। यह महोत्सव न केवल वर्षा ऋतु के सौंदर्य का उत्सव था, बल्कि यह भारतीय शास्त्रीय संगीत की धारा को जीवित रखने और उसे नई पीढ़ी तक पहुँचाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गया।
यह महोत्सव जवाहर कला केंद्र की ओर से भारतीय संस्कृति और संगीत को प्रोत्साहित करने के लिए एक बेहतरीन कदम था, जिसने शास्त्रीय संगीत के श्रोताओं को एक अद्भुत अनुभव प्रदान किया।
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