लुधियाना वेस्ट उपचुनाव: अरविंद केजरीवाल की राजनीति की अग्निपरीक्षा, विसावदर से भी बंधी उम्मीदें

राजनीति में हर चुनाव केवल एक सीट का नहीं, बल्कि पूरे भविष्य की दिशा का फैसला करता है। ऐसे ही दो उपचुनावों—लुधियाना वेस्ट (पंजाब) और विसावदर (गुजरात)—पर इन दिनों सबकी नजरें टिकी हुई हैं। खासकर अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी आम आदमी पार्टी (AAP) के लिए ये दोनों चुनाव निर्णायक साबित हो सकते हैं।
लुधियाना वेस्ट: केजरीवाल की 'राजनीतिक पुनर्रचना' की नींव?
लुधियाना वेस्ट उपचुनाव इस समय केजरीवाल की राजनीतिक रणनीति का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय बन गया है। दिल्ली की सत्ता से बाहर किए जाने के बाद उनके लिए यह एक राजनीतिक 'रिबूट' का अवसर बन गया है। यहां पर AAP उम्मीदवार संजीव अरोड़ा के लिए उन्होंने खुद जमीन पर उतरकर प्रचार किया है, और यहां तक कह दिया कि अगर पार्टी यह चुनाव हार गई तो "विकास कार्य रुक जाएंगे"। यह सीधा संदेश था: "जीतिए, नहीं तो कुछ मत मांगिए!" — यह वही रणनीति है जो उन्होंने पहले दिल्ली में भी अपनाई थी। लेकिन अब दांव और भी बड़ा है। एक और बात साफ होती जा रही है—केजरीवाल के लिए राज्यसभा पहुंचने का रास्ता भी यहीं से होकर निकलता है। अगर पार्टी जीतती है तो यह संजीव अरोड़ा के लिए न सिर्फ मंत्री पद का रास्ता खोलेगा, बल्कि पार्टी के भीतर केजरीवाल की स्थिति को और मज़बूती देगा। लेकिन यदि अरोड़ा हार जाते हैं तो न सिर्फ राज्यसभा का रास्ता बंद होगा, बल्कि पार्टी के भीतर और बाहर उनके नेतृत्व पर सवाल भी खड़े हो सकते हैं।
विसावदर: गुजरात में नई जमीन तलाशती AAP
लुधियाना के समानांतर गुजरात की विसावदर सीट भी उपचुनाव का हिस्सा है, और यहां भी AAP ने आक्रामक प्रचार किया है। केजरीवाल ने दावा किया है कि उन्होंने “अपने हीरो” को मैदान में उतारा है और यहां से भारतीय जनता पार्टी को सीधी चुनौती दी है। चुनावी रैलियों में उन्होंने बीजेपी पर तीखे हमले किए—“बीजेपी ने 30 सालों में गुजरात को 50 साल पीछे धकेल दिया है।” उन्होंने विसावदर की जनता से अपील की कि वह उदाहरण बनें और विकास की राजनीति को आगे लाएं। उनके मुताबिक, विसावदर का चुनाव “महाभारत” से कम नहीं है। गुजरात में AAP की चुनौती अभी भी उभरती हुई है। 2022 के विधानसभा चुनावों में AAP ने 5 सीटें जीतकर अपने पैर जमाने की शुरुआत की थी। लेकिन अगर पार्टी को लंबी रेस में रहना है, तो विसावदर जैसे उपचुनावों में अपनी पकड़ मजबूत करनी ही होगी।
क्या होगा अगर नतीजे AAP के खिलाफ आए?
अगर AAP इन दोनों सीटों—लुधियाना वेस्ट और विसावदर—में से किसी एक या दोनों में हार जाती है, तो पार्टी की राजनीतिक दिशा में बड़ा बदलाव संभव है। दिल्ली में मिली हार और INDIA गठबंधन से अलग होने के बाद यह चुनाव केजरीवाल के लिए व्यक्तिगत और राजनीतिक दोनों ही मोर्चों पर ‘अग्निपरीक्षा’ है। यदि नतीजे मनमाफिक नहीं आए, तो केजरीवाल को फिर से कांग्रेस से हाथ मिलाने या अन्य राजनीतिक दलों से समझौते करने की जरूरत पड़ सकती है। विपक्षी एकता से दूर रहना तब तक ही फायदेमंद रहता है जब तक जनमत साथ हो। वरना, अकेले चलना राजनीतिक आत्मघाती कदम बन सकता है।
23 जून, जब इन उपचुनावों के नतीजे आएंगे, वह दिन सिर्फ दो विधायकों के नाम तय नहीं करेगा। वह दिन यह तय करेगा कि अरविंद केजरीवाल की राजनीति किस दिशा में जाएगी—राज्यसभा की ओर या राजनीतिक पुनःमूल्यांकन की ओर। लुधियाना वेस्ट जीतते हैं तो AAP का मनोबल ऊंचा होगा, राज्यसभा का रास्ता खुल सकता है और बिहार जैसे राज्यों में पार्टी आक्रामक रणनीति के साथ उतर सकेगी। वहीं, हार की स्थिति में पार्टी को अपने पूरे राजनीतिक दर्शन और गठबंधनों की रणनीति पर फिर से विचार करना पड़ेगा।