राजा की 9 प्रेमिकाओं के लिए बनाया गया था जयपुर नाहरगढ़ किला, वायरल वीडियो में देखे रहस्यमयी इतिहास
अरावली पर्वतमाला के बीच में स्थित विशाल नाहरगढ़ किला जयपुर शहर की शान का प्रतीक है। किसी समय नाहरगढ़ किला, आमेर और जयगढ़ किलों के साथ जयपुर शहर की सुरक्षा घेरे का काम करता था। महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने जयपुर शहर के निर्माण के सात साल बाद यानी 1734 में नाहरगढ़ किले का निर्माण करवाया था। मूल रूप से इसका निर्माण मराठों के हमले से बचने के लिए किया गया था, लेकिन बाद में इस किले का इस्तेमाल राजाओं के ग्रीष्मकालीन निवास के रूप में होने लगा। उस समय किले के निर्माण पर करीब 3.30 लाख रुपए खर्च हुए थे।
कई नाम: नाहरगढ़ के थे 7 नाम
इस किले का मूल नाम सुदर्शनगढ़ था जिसे बाद में बदलकर नाहरगढ़ कर दिया गया जिसका मतलब होता है 'बाघों का निवास'। लेकिन इतिहासकारों का कहना है कि जयपुर के लोगों ने इस किले को कई नामों से पुकारा है। जानकारी मांगने पर कुल सात और नाम सामने आए। ये हैं सुलक्षण किला, सुदर्शन किला, बाघ किला, जयपुर ध्वजगढ़, जयपुर का ताज, महलों का किला और मिथरी किला। 1868 में महाराजा सवाई राम सिंह ने नाहरगढ़ किले का विस्तार किया। बाद में 1880 में महाराजा सवाई माधो सिंह ने इस किले को मानसून रिट्रीट में बदलने की जिम्मेदारी राज इमारत को दी, जो शाही निर्माण परियोजनाओं को संभालती है। उन्होंने उन्हें किले के अंदर ही एक छोटा महल डिजाइन करने के लिए कहा जो एक हॉलिडे रिसॉर्ट होगा। नाहरगढ़ किले का मुख्य आकर्षण माधवेंद्र भवन है जिसे विद्याधर भट्टाचार्य ने डिजाइन किया था। माधवेंद्र भवन 12 समान कमरों वाली एक शानदार संरचना है। ये कमरे महाराजा की नौ पत्नियों के लिए बनाए गए थे।
किंवदंती: बाधाओं को दूर करने के लिए बनाई गई थी भोमिया की छतरी
इस किले के निर्माण के बारे में एक किंवदंती है कि जब महाराजा सवाई जय सिंह अपनी नई स्थापित राजधानी जयपुर की सुरक्षा के लिए इस किले का निर्माण कर रहे थे, तो भोमिया जुझार नाहर सिंह ने किले के निर्माण में बाधाएं पैदा कीं। कहा जाता है कि दिन में किए गए निर्माण कार्य को भोमिया जी ने रात में ध्वस्त कर दिया था। फिर उनके नाम पर एक छतरी बनाई गई, जिसके बाद निर्माण कार्य सुचारू रूप से चलता रहा। तब से इस किले का नाम नाहरगढ़ पड़ा।
9 महल: राजा के कक्ष के दोनों ओर रानियों के महल
इतिहासकार बताते हैं कि सवाई माधो सिंह ने अपनी नौ पसवनों (प्रेमिकाओं) के नाम पर यहां नौ एक मंजिला और दो मंजिला महल बनवाए थे। ये सभी महल एक जैसे हैं। इन्हें "विक्टोरियन शैली" में बनाया गया है। नौ महलों के नाम इस प्रकार हैं: सूरज प्रकाश, खुशाल प्रकाश, जवाहर प्रकाश, ललित प्रकाश, आनंद प्रकाश, लक्ष्मी प्रकाश, चांद प्रकाश, फूल प्रकाश और बसंत प्रकाश। रानियों के सभी महल छत पर बने एक गलियारे से जुड़े हुए हैं। यह गलियारा राजा के कक्ष के दोनों ओर से रानियों के महलों से जुड़ा हुआ है। इसके जरिए राजा किसी भी रानी के कक्ष में जा सकते थे।
स्टॉप से दिखती है शहर की खूबसूरती
नाहरगढ़ वाले हिस्से में एक जगह है जिसे नाहरगढ़ का स्टॉप कहते हैं। यहां से पर्यटक दिन और रात दोनों समय शहर की खूबसूरती को निहारते हैं। यहां कैफेटेरिया भी है। यहां से लोग दिवाली की रात शहर की रोशनी भी देखते हैं।
नाहरगढ़ का रास्ता किसी रोमांच से कम नहीं
नाहरगढ़ जाना किसी रोमांच से कम नहीं है। जब हम आमेर की तरफ जाते हैं तो एक सर्पीली पगडंडी पहाड़ी पर जाती है। करीब 9 किलोमीटर चढ़ाई चढ़ने के बाद एक जंक्शन आता है। यहां से चरण मंदिर होते हुए 3 किलोमीटर आगे नाहरगढ़ का खूबसूरत किला है।