वीडियो में जाने कैसे राजा राजा जयसिंह के एक स्वप्न से अस्तित्व में आया विश्विख्यात गोविन्द देव जी मन्दिर, जाने 250 साल पुरानी मूर्ती का इतिहास
इस बार जयपुरवासियों ने अपने घरों में ही जन्माष्टमी मनाई। जयपुर के इष्टदेव गोविंद देव जी का मंदिर भी सूना रहा। इस मंदिर का इतिहास 250 साल से भी ज्यादा पुराना है। जो जयपुर की स्थापना से पहले का है। उस समय गोविंद देव जी की मूर्ति जयपुर परकोटे के बीच में न होकर आमेर के पास कनक वृंदावन में थी। तब यहां कोई घर नहीं था, दूर-दूर तक सिर्फ जंगल ही नजर आता था। इस स्थान को आज भी पुराना गोविंद देव जी कहा जाता है।
महाराजा जयसिंह द्वितीय ने जयपुर की स्थापना की थी। कहा जाता है कि इस दौरान गोविंद देव जी जयसिंह के सपने में आए और कहा कि मुझे ऐसे स्थान पर रखो जहां आमजन मेरे दर्शन कर सकें। इस दौरान ठाकुर जी ने अपनी स्थापना का स्थान भी बताया। जिसके बाद गोविंद देव जी की मूर्ति जयपुर परकोटे में विराजमान कर दी गई। इसलिए कनक वृंदावन को पुराने गोविंद देव जी की संपत्ति कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1735 में हुआ था।
क्या है मंदिर का इतिहास
गोविंद देव जी को मथुरा वृंदावन से जयपुर लाया गया था। कहा जाता है कि 17वीं शताब्दी में वृंदावन में गोविंद देव जी का मंदिर 7 मंजिला ऊंचा हुआ करता था। जिसमें कार्तिक महीने में आकाश दीप जलाया जाता था। जिसमें 60 किलो घी का इस्तेमाल किया जाता था। इसकी रोशनी इतनी तेज होती थी कि दिल्ली के लाल किले से साफ दिखाई देती थी। एक दिन औरंगजेब ने इस रोशनी को देखा तो उसे इस मंदिर के बारे में जानकारी मिली। जिसके बाद उसने मंदिर की तीन मंजिलों को तुड़वा दिया। आज भी मथुरा वृंदावन में गोविंद देव जी के मंदिर की तीन मंजिलें टूटी हुई हैं।
राजा मानसिंह मूर्ति को जयपुर लाए थे
कुछ समय बाद जयपुर के राजा मानसिंह मुगल सेनापति थे। तब गोविंद देव जी की मूर्ति को मथुरा वृंदावन से जयपुर के आमेर राज्य में लाया गया था। इस दौरान गोविंद देव जी, गोपीनाथ जी, मदन मोहन जी, राधा दामोदर जैसे तमाम मंदिर मथुरा वृंदावन से लाए गए। इन्हें अलग-अलग जगहों पर स्थापित किया गया। शुरुआत में गोविंद देव जी मंदिर का खर्च राजपरिवार उठाता था। बाद में जागीरदारों और ठाकुरों से 'सेस' वसूल कर मंदिर कोष के लिए पैसे जुटाए गए। कुछ समय बाद जागीर मंदिर के नाम कर दी गई। इससे होने वाली आय मंदिर के लिए ही खर्च की जाती है।

