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फर्जी एनओसी से किडनी ट्रांसप्लांट मामले में पुलिस के हाथ लगा बड़ा सबूत, देखें कैमरे में कैद हुए आरोपी

फर्जी एनओसी से निजी अस्पतालों में किडनी ट्रांसप्लांट मामले में नया खुलासा हुआ है। पड़ताल में सामने आया कि इंटेलिजेंस ने 7 माह पहले ही राजस्थान में किडनी तस्करी की सूचना पुलिस को दी थी, पर कार्रवाई नहीं हुई...........
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राजस्थान न्यूज़ डेस्क !!! फर्जी एनओसी से निजी अस्पतालों में किडनी ट्रांसप्लांट मामले में नया खुलासा हुआ है। पड़ताल में सामने आया कि इंटेलिजेंस ने 7 माह पहले ही राजस्थान में किडनी तस्करी की सूचना पुलिस को दी थी, पर कार्रवाई नहीं हुई। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार इंटेलिजेंस को अगस्त 2023 में नेपाल के एक व्यक्ति ने ईमेल किया था। इसमें सूचना दी गई कि एक नेपाली व्यक्ति किडनी ट्रांसप्लांट के लिए राजस्थान आया है लेकिन डोनर संदिग्ध है। ईमेल में व्यक्ति का नाम, पता, फोटो और हुलिया की जानकारी भी थी। इंटेलिजेंस ने इस इनपुट को प्रदेश के सभी एसपी को भेजा और नेपाली व्यक्ति को ट्रेस करने के लिए कहा। जिलों की पुलिस तो व्यक्ति तक नहीं पहुंच पाई, लेकिन स्टेट स्पेशल ब्रांच के जयपुर सिटी जोन ऑफिस ने उसे ढूंढ़ लिया। वो उस समय ईएचसीसी अस्पताल में भर्ती था और उसका किडनी ट्रांसप्लांट हो चुका था।

चिकित्सा एवं स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव शुभ्रा सिंह ने मानव अंग प्रत्यारोपण के लिए फर्जी एनओसी जारी करने की जानकारी मिलने पर स्वत: संज्ञान लिया. उन्होंने इस मामले में उच्चस्तरीय बैठक कर जांच कर त्वरित कार्रवाई करने का निर्देश दिया था. विभाग की इस पहल के बाद भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने मामले में शामिल एसएमएस और निजी अस्पतालों के कर्मियों को गिरफ्तार कर लिया था.

अंतर्राष्ट्रीय स्तर का रैकेट: सक्षम प्राधिकारी डॉ. रश्मि गुप्ता ने कहा कि मीडिया के माध्यम से यह बात सामने आई कि जयपुर के एक निजी अस्पताल में लोगों को लाया गया और उनकी किडनी निकालकर गुरुग्राम भेज दी गई. इस मामले में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का रैकेट सक्रिय बताया गया था. सहायक पुलिस आयुक्त, मालवीय नगर, जयपुर ने इस संबंध में जांच के लिए गुरुग्राम का दौरा किया। जांच में पाया गया कि जयपुर के एक निजी अस्पताल में कुछ बांग्लादेशी निवासियों द्वारा किडनी प्रत्यारोपण किया गया था।

जांच के मुताबिक, किडनी देने वाले और किडनी लेने वाले एक-दूसरे के रिश्तेदार या खून के रिश्ते में नहीं थे और न ही वे एक-दूसरे को जानते थे। उनके बयानों के अनुसार, निजी अस्पताल प्रशासन, प्राधिकरण समिति या किसी अन्य डॉक्टर द्वारा उनसे किसी भी प्रकार की एनओसी जमा करने के लिए नहीं कहा गया था, न ही किडनी दाता और प्राप्तकर्ता के बीच रक्त संबंध साबित करने के दस्तावेज मांगे गए थे। उनसे कुछ कोरे कागजों पर हस्ताक्षर कराए गए और फर्जी एनओसी बनाने के लिए पैसे भी लिए गए। जांच के मुताबिक इस मामले में शामिल दलाल मुर्तजा अंसारी, निजी अस्पताल प्रशासन और डॉक्टरों ने किडनी रिसीवर और किडनी डोनर को धोखा देकर पैसे हड़प लिए हैं.

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