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''मेरी तरह मत बनना...''वीडियो में देखें उस खतरनाक हत्यारे की खूनी कहानी जिसने सिर्फ मजे के लिए की थी 70 से ज्यादा हत्याएं

साल 1973, राजस्थान का श्रीगंगानगर जिला, सुबह के पांच-साढ़े पांच बजे होंगे, जिले के सादुलशहर थाने में शिफ्ट चेंज हो रही थी, तभी फोन की घंटी बजी, सिपाही ने फोन उठाया तो पैरों तले जमीन खिसक गई, खबर आई कि रात में गुरुद्वारे में तीन लोगों का कत्ल हो गया................
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राजस्थान न्यूज़ डेस्क !!! साल 1973, राजस्थान का श्रीगंगानगर जिला, सुबह के पांच-साढ़े पांच बजे होंगे, जिले के सादुलशहर थाने में शिफ्ट चेंज हो रही थी, तभी फोन की घंटी बजी, सिपाही ने फोन उठाया तो पैरों तले जमीन खिसक गई, खबर आई कि रात में गुरुद्वारे में तीन लोगों का कत्ल हो गया, पुलिस पहुंची तो देखा कि गुरुद्वारे के सेवादार और उनके दो बेटों की लाशें जमीन पर पड़ी हुई थी, कातिल ने इतनी बेरहमी से उनका कत्ल किया था की तीनों का खून भी सूख चुका था, पुलिस ने जब ध्यान से तीनों शवों को देखा तो पाया कि इनके कान के नीचे किसी भारी चीज से वार किया गया था. जिसके बाद पुलिस को ये समझते हुए देर नहीं लगी की इन तीनों मर्डर का ताल्लुक, हत्याओं की उस कड़ी से जुड़ा है जो पिछले कुछ समय में आसपास के इलाकों में दहशत फैलाये हुए है  

ये एक सीरीयल किलिंग थी जिसे कनपटीमार किलर के नाम से मशहूर सीरियल किलर ने अंजाम दिया था। कनपटीमार नाम से ही पता चल रहा है कि ये किलर लोगों की कनपटी पर वार कर उनकी जान लेता था. ये किलर इतना शातिर था कि ये 10 से ज्यादा जगहों पर कई लोगों को मौत के घाट उतार चुका था. फिर भी पहचान के नाम पर पुलिस के पास इसकी फोटो या हुलिया तक नहीं था. अपने पूरे क्रिमिनल जीवन के दौरान इस किलर ने 70 लोगों की जान ली थी, हम आपको सुनाने जा रहे हैं राजस्थान ही नहीं हिंदुस्तान के सबसे खतरनाक सीरियल किलर  कनपटीमार की खौफनाक दास्तान

किसी एक इंसान ने अगर कई लोगों की जान ली हो और इन हत्याओं में कोई मोटिव साफ न हो तो इन्हें सीरियल किल्लिंग्स के नाम से जाना जाता है. ऐसे किलर्स रैंडम टार्गेट चुनते हैं और हत्याएं करते हैं। अधिकतर मामलों में हत्याओं के बीच कोई कॉमन लिंक भी नहीं मिलता, जिसके चलते ये पता करना मुश्किल हो जाता है कि क्राइम करने का असली मकसद क्या था. कनपटीमार किलर के मामले में भी ऐसा ही हुआ. 

70 के दशक में जब एक ओर देश में पाकिस्तान से जंग के बादल घिर रहे थे, वहीँ दूसरी ओर राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के इलाके में खौफ अपने पांव पसार रहा था.  अगर आप उत्तर भारत के किसी ग्रामीण इलाके से हैं तो मुमकिन है आपने मुंहनोचवा या चोटीकटवा जैसे शब्द सुने होंगे. मुंहनोचवा या चोटीकटवा रात के अंधेरे में घात लगाकर हमला करने के लिए मशहूर थे. अधिकतर मामलों में ये घटनाएं चोरी और लूटपाट तक ही सीमित थीं. पर राजस्थान का कनपटीमार किलर जब तक अपने शिकार की जान नहीं ले लेता, तब तक उसे छोड़ता नहीं था. ये किलर रात के अंधेरे में कंबल ओढ़कर घात लगाए रहता था. जिसके कंबल में हथौड़ा छिपा रहता था. जैसे ही इसे कोई अकेला इंसान मिलता, ये उसके कान के ठीक नीचे हमला करता. कान के ठीक नीचे का हिस्सा नाजुक होता है. ऐसे में हथौड़े के एक से दो वार किसी को धराशायी करने के लिए काफ़ी होते हैं. कनपटीमार एक के बाद एक हमले कर रहा था. लेकिन वो कौन था और कहां था इसकी पुलिस को कोई खबर नहीं थी.

ये वो दौर था जब सर्विलांस और फोरेंसिक साइंस जैसी चीजें ज्यादा चलन में नहीं थीं. कातिल की पहचान के नाम पर पुलिस के पास न कोई नाम था और ना ही कोई हुलिया. थी तो बस किलर के हमले से बचकर निकले कुछ लोगों की गवाही, जिन्होंने भी बस इतना बताया था कि ये सीरियल किलर रात के अंधेरे में कंबल ओढ़कर, घात लगाकर हमला करता है. फिर इस मामले में सबसे बड़ा मोड़ साल 1973 में आया, जब श्रीगंगानगर के एक गुरुद्वारे में कनपटीमार ने तीन लोगों की हत्या कर दी गई थी. एसपी श्याम प्रताप सिंह ने इस मामले की छानबीन शुरू की और काफी पूछताछ के बाद एक सुराग मिला. पता चला कि हत्या के रोज़ एक शख्स रेलवे ट्रैक पर चलते हुए सादुलशहर रेलवे स्टेशन की तरफ जाते देखा गया था. हालाँकि, वो कौन था, कहाँ से आया और कहाँ गया इसका पता कोई नहीं लगा पाया।  

सादुलशहर जैसे छोटे इलाके में अधिकतर लोग एक दूसरे को जानते थे, इसलिए ये बात तो तय थी कि सुबह के समय रेलवे लाइन के पास दिखा इंसान लोकल नहीं था. जांच की कहानी आगे बढ़ते हुए पहुंची सादुलशहर रेलवे स्टेशन, जहां मौजूद रेलवे स्टाफ ने बताया कि तड़के सादुलशहर से बठिंडा का टिकट जारी हुआ था. जब पुलिस भटिंडा पहुंची तो पता चला कि वहां से भी एक टिकट सादुलशहर के लिए जारी किया गया था. इससे पुलिस को ये कन्फर्म तो हो गया कि जिस शख्स ने टिकट खरीदा था, उसका इस मर्डर से जरूर कोई न कोई कनेक्शन है. पर बिना नाम, पहचान और हुलिया के इस किलर को ढूँढना पुलिस के लिए एक नामुनकिन सा काम था। 

इसके बाद पुलिस ने तहकीकात का सबसे पुराना तरीका अपनाते हुए, ऐसे सभी लोगों को पूछताछ के बुलाया, जिनका कभी इस कनपटीमार किलर से सामना हुआ था. पुलिस को सिर्फ एक चीज पता थी कि किलर कंबल ओढ़कर देखा गया है लेकिन, विक्टिम पर हमला करने के लिए उसे कंबल हटाना पड़ता होगा. बिना कंबल हटाए, किसी पर ऐसा हमला करना मुमकिन नहीं है. ऐसे में पुलिस को एक विक्टिम मिला, जिसने कनपटीमार किलर का चेहरा देखा था. जब वो एक सुनसान रास्ते से गुजर रहा था, तब कनपटीमार किलर ने उस पर हमला किया, जिस दौरान उसका कंबल नीचे गिर गया और इस व्यक्ति ने किलर का चेहरा देख लिया. इसके बाद पुलिस ने एक-एक कर सारे विक्टिम्स से अलग-अलग पूछताछ की और इस हुलिए के आधार उसका एक स्केच तैयार किया गया. सभी गवाहों से अलग-अलग पूछताछ करने पर ये बात भी साफ हो गई कि पंजाब से लेकर राजस्थान तक, हथौड़ा मारकर जान लेने की जितनी भी वारदातें हुई हैं, उन्हें एक ही आदमी ने अंजाम दिया है। 

लेकिन ये राज अब भी अनसुलझा था कि किलर की लोकशन क्या है ? क्राइम का दायरा एक बड़े इलाके में फैला हुआ था और सारे क्षेत्र की तलाशी मुमकिन नहीं थी. तो पुलिस ने अपने सर्च ऑपरेशन के दायरे को थोड़ा नैरो डाउन किया. पुलिस अब ऐसी जगहों और रास्तों पर नजर रखने लगी जो सुनसान थे और जहां ऐसे किलर के लिए किसी मर्डर को अंजाम देना आसान था. कई रातें गुजर गईं पर कनपटीमार किलर का कोई पता नहीं चला. फिर साल 1979 में पुलिस के हाथ एक शख्स लगा.

एक रात जब पुलिस जयपुर के एक सुनसान इलाके में गश्त पर थी. पुलिस ने देखा कि सड़क पर एक साया सा चला आ रहा था. जो पुलिस को देखते ही सड़क किनारे एक पेड़ के पीछे छुप गया. फिर उसने एक कंबल निकाला और उससे खुद को ढंक लिया. पुलिस को पहले तो लगा कि ये उनकी टीम का ही कोई सिपाही है. लेकिन पुलिस तो कंबल लेकर आई नहीं थी.

पुलिस ने कुछ देर इंतज़ार किया, तो पेड़ के पीछे छिपा शख्स कंबल लपेटकर बाहर निकला और इस बार पुलिस ने उसे दबोच लिया. हालांकि अभी ये कन्फर्म नहीं था कि यही कनपटीमार किलर है या नहीं. थाने ले जाकर उससे पूछताछ करने पर उसने अपना नाम शंकरिया होने के . साथ जयपुर का एक एड्रेस बताया. पुलिस ने बताए गए पते पर जाँच की तो वहां उन्हें शंकरिया के मां-बाप मिले, जिससे पुख्ता हो गया कि वो सच बोल रहा है.

पुलिस ने उससे थोड़ी और पूछताछ की, शंकरिया से पूछा गया कि पूरे राज्य में किलर का खौफ है, 60 से ज्यादा लोगों की हत्या हो चुकी है. ऐसे में वो अकेले कंबल लेकर कहां घूम रहा था? पुलिस को उस पर शक था. लेकिन उसके पास कोई हथियार नहीं मिला था. जबकि, जो लोग मारे गए थे, उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ये साफ था कि किसी हथौड़े जैसी चीज से उनके सर पर वार किया गया है. शंकरिया के पास से पुलिस को ऐसा कोई हथौड़ा नहीं मिला.

पुलिस कई दिनों तक उससे पूछताछ करती रही और वो गोलमोल जवाब देता रहा. फिर एक रोज़ पुलिस ने जब उससे पूछा कि 60 लोगों की हत्या हो चुकी है, क्या तुमने की? इस पर शंकरिया ने जो जवाब दिया, उससे पुलिस के होश उड़ गए. उसने कहा साहब 60 नहीं 70 मार चुका हूं. पुलिस के सवालों से झल्लाकर उसे खा कि हां मैं ही कनपटीमार किलर हूं. पुलिस को अब भी पक्का नहीं था कि एक 25 साल का दुबला-पतला, देखने में ठीक-ठाक सा लड़का, ऐसा कर सकता है. पुलिस ने उससे हथौड़े के बारे में पूछा. शंकरिया पुलिस को उसी जगह ले गया जहां वो छिपकर बैठा था और तलाशी में वहीँ झाड़ी के पीछे से उसने एक हथौड़ा निकाला और पुलिस के सामने रख दिया।

इससे ये बात पक्की हो गई कि शंकरिया ही कातिल है. पुलिस ने जब उसके मां-बाप से उसके रूटीन के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वो ज्यादातर घर पर ही रहता था, पर कभी-कभी देर रात दोस्तों से मिलने के लिए बाहर निकलता था. पुलिस के जोर डालने पर शंकरिया ने धीरे-धीरे सब उगलना शुरू किया. उसे 70 में से 50 मर्डर की तो तारीख तक याद थी. हालांकि अदालत में पुलिस 70 में से बस 63 मर्डर के सबूत सामने रख पाई. शंकरिया से इन कत्लों की वजह पूछने पर उसने बताया कि जब वो हथौड़े से लोगों को मारता तो वो चीखते थे. इससे उसे मज़ा आता था. एक जगह तो वो कहता है कि मरने वालों की चीख, उसे किसी संगीत की धुन जैसी लगती थी.

शंकरिया का अपराध रेयर ऑफ द रेयर की श्रेणी में आता था. इसलिए उसका केस पहले राजस्थान हाई कोर्ट, फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. लेकिन सभी जगहों से उसे सजा-ए-मौत सुनाई गई. उसने राष्ट्रपति के पास दया याचिका लगाई लेकिन वो भी रिजेक्ट हो गई. आखिर में 16 मई, 1979 को शंकरिया को फांसी दे दी गई. 

शंकरिया केस की खास बात ये भी थी कि ये देश के इतिहास में सबसे स्पीडी ट्रायल्स में से एक था. जिनमें सजा-ए-मौत दी गई थी. जनवरी 1979 में वो पकड़ा गया था और मई में उसे फांसी दे दी गई. तब शंकरिया की उम्र मात्र 27 साल थी. पॉल सिम्पसन की किताब, द सीरियल किलर फाइल्स के अनुसार मरने से पहले शंकरिया अपने किए पर शर्मिंदा था. मरने से कुछ वक्त पहले उसने एक पुलिस वाले से कहा था कि मैंने जो हत्याएं की. वो बेवजह थीं. मैं नहीं चाहता कोई मेरे जैसा बने.

शंकरिया चला गया हालांकि उत्तर भारत के इलाकों में कनपटीमार का खौफ कई सालों तक बरक़रार रहा. हत्या का कोई केस सामने आता, सबसे पहले अफवाह फैलती की कंपटीमार फिर से आ गया है. सीरियल किलिंग का ये केस देश के सबसे खूंखार अपराध की कहानी है. जो राजस्थान में आज भी सुनाई दे जाती है. कुछ वक्त पहले, अमेज़न पर रिलीज हुई पाताललोक सीरीज का कैरेक्टर हथौड़ा त्यागी का किरदार कनपटीमार शंकरिया पर ही बेस्ड था.  

तो दोस्तों ये थी राजस्थान के सबसे खूंखार सीरियल किलर कि कहानी, वीडियो देखने के लिए धन्यवाद, अगर आपको यह वीडियो पसंद आया तो प्लीज कमेंट कर अपनी राय दें, चैनल को सब्सक्राइब करें, वीडियो को लाइक करें, और अपने फ्रेंड्स और फेमिली के साथ इसे जरूर शेयर करें।

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