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जानलेवा बनता कोहरा: हाईवे पर मौत का साया, सरकारें एडवाइजरी तक सीमित

जानलेवा बनता कोहरा: हाईवे पर मौत का साया, सरकारें एडवाइजरी तक सीमित

राजस्थान सहित उत्तर भारत के कई राज्यों में सर्दी के साथ घने कोहरे ने दस्तक दे दी है। हर साल की तरह इस बार भी कोहरा धीरे-धीरे जानलेवा साबित हो रहा है। खासतौर पर नेशनल हाईवे और एक्सप्रेस-वे पर बीते एक सप्ताह में हुई कई बड़ी सड़क दुर्घटनाओं ने प्रशासनिक तैयारियों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

जानकारी के मुताबिक, पिछले सात दिनों में अलग-अलग राज्यों में कोहरे के कारण हुए हादसों में 15 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि बड़ी संख्या में लोग घायल हुए हैं। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और दिल्ली-एनसीआर में दृश्यता शून्य के करीब पहुंचने से वाहन चालकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि कोहरे के दौरान हाईवे और एक्सप्रेस-वे पर स्पीड कंट्रोल, साइन बोर्ड और रिफ्लेक्टर सिस्टम की कमी हादसों की बड़ी वजह बन रही है। कई स्थानों पर फॉग लाइट्स, रोड स्टड्स और चेतावनी संकेत या तो खराब हैं या पूरी तरह नदारद हैं।

इसके बावजूद केंद्र और राज्य सरकारें महज एडवाइजरी जारी कर अपने दायित्व की औपचारिकता पूरी करती नजर आ रही हैं। हर साल की तरह इस बार भी वाहन चालकों को धीरे चलने, फॉग लाइट्स का उपयोग करने और दूरी बनाए रखने की सलाह दी जा रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर ठोस इंतजाम न के बराबर हैं।

ट्रैफिक विशेषज्ञों का मानना है कि केवल चेतावनी जारी करना पर्याप्त नहीं है। कोहरे के मौसम में हाईवे पर स्पीड लिमिट सख्ती से लागू, पुलिस पेट्रोलिंग बढ़ाने और अत्याधुनिक इंटेलिजेंट ट्रैफिक सिस्टम (ITS) की जरूरत है। इसके अलावा भारी वाहनों की आवाजाही पर भी समयबद्ध नियंत्रण आवश्यक है।

राजस्थान में खासकर जयपुर-दिल्ली, जयपुर-आगरा और कोटा-इंदौर जैसे हाईवे पर कोहरे का असर ज्यादा देखा जा रहा है। कई जगहों पर सुबह के समय दृश्यता 10 से 20 मीटर तक सिमट जाती है, जिससे टक्कर की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।

स्थानीय लोगों और वाहन चालकों का कहना है कि कोहरे के दौरान आपातकालीन सेवाएं भी समय पर नहीं पहुंच पातीं, जिससे हादसों में जान जाने का खतरा और बढ़ जाता है। एंबुलेंस और रेस्क्यू टीमों को भी कम दृश्यता के कारण परेशानी होती है।

हर साल कोहरा दर्जनों परिवारों को उजाड़ देता है, लेकिन इसके बावजूद स्थायी समाधान की दिशा में कोई ठोस नीति नजर नहीं आती। सवाल यह है कि जब मौसम विभाग पहले से चेतावनी देता है, तो प्रशासन क्यों केवल कागजी निर्देशों तक सीमित रह जाता है।

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