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पटना में साहित्यिक निवास कार्यक्रम पर विवाद, साहित्यकारों में असंतोष

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हिंदी साहित्य के समृद्ध इतिहास और संस्कृति में अहम योगदान देने वाले प्रेमचंदकालीन लेखक राजा राधिकरमण प्रसाद सिंह द्वारा शुरू की गई पत्रिका 'नई धारा' के प्रकाशन के 75 वर्ष पूरे होने पर पटना में पहली बार एक 'साहित्यिक निवास कार्यक्रम' का आयोजन किया गया। हालांकि, इस कार्यक्रम का उद्देश्य साहित्यकारों को एक मंच पर लाना और शब्दों से खेलने की कला सिखाना था, लेकिन यह आयोजन विवादों में घिर गया है।

कई साहित्यकारों का मानना है कि इस कार्यक्रम का संचालन और आयोजन प्रक्रिया में कुछ गड़बड़ियां थीं, जिनकी आलोचना की जा रही है। 'नई धारा' के प्रकाशन के 75 साल पूरे होने की खुशी में आयोजित इस साहित्यिक निवास में हुए घटनाक्रम ने न केवल साहित्यकारों को, बल्कि समाज के कई अन्य हिस्सों को भी चौंका दिया है। कार्यक्रम के दौरान जो बातें और घटनाएं सामने आईं, उन्होंने साहित्यिक दुनिया में हलचल मचा दी है।

विवाद के मुख्य बिंदु में यह है कि कार्यक्रम के दौरान साहित्यकारों के बीच पारदर्शिता की कमी, विशेष रूप से चयन प्रक्रिया को लेकर सवाल उठाए गए हैं। कुछ साहित्यकारों ने आरोप लगाया कि आयोजकों ने अपनी पसंदीदा शख्सियतों को ही मंच पर प्राथमिकता दी और कार्यक्रम के उद्देश्य को सही तरीके से पूरा नहीं किया।

इस विवाद ने साहित्य की दुनिया में इस पहल की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर दिया है, और साहित्यकारों के बीच असंतोष फैलाया है। अब 'अमर उजाला' जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान ने इस घटना की तहकीकात की है और हर पक्ष को सामने लाकर मामले को स्पष्ट किया है।

यह घटना एक बार फिर साहित्य जगत में आयोजनों की पारदर्शिता, चयन प्रक्रिया और साहित्यिक समाज में निष्पक्षता की आवश्यकता को उजागर करती है।

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