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प्रदेश में फायर एनओसी नियमों में बदलाव, देखे वीडियो

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राज्य सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए राजस्थान के नगर निगम, नगर पालिका और नगर परिषद क्षेत्रों में फायर एनओसी (नॉन-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट) के नवीनीकरण से जुड़े नियमों में बड़ा बदलाव किया है। अब भवन मालिकों को इस प्रमाणपत्र के नवीनीकरण के लिए पहले की तुलना में दोगुनी फीस चुकानी होगी। सरकार का तर्क है कि यह निर्णय शहरी क्षेत्रों में अग्नि सुरक्षा मानकों को सख्ती से लागू करने और संसाधनों की लागत के अनुपात में राजस्व जुटाने की दिशा में उठाया गया कदम है।

क्या है फायर एनओसी?
फायर एनओसी एक आधिकारिक दस्तावेज होता है, जो किसी भी व्यावसायिक, औद्योगिक या बहुमंजिला भवन को यह सुनिश्चित करने के बाद जारी किया जाता है कि उसमें अग्निशमन से संबंधित पर्याप्त व्यवस्थाएं की गई हैं। यह प्रमाणपत्र भवन मालिकों के लिए अनिवार्य होता है, और समय-समय पर इसका नवीनीकरण जरूरी होता है ताकि सुरक्षा मानकों का पालन जारी रह सके।

अब क्या बदलेगा?
राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित नए नियमों के तहत:

  • फायर एनओसी नवीनीकरण शुल्क को दोगुना कर दिया गया है, जिससे आवेदकों को पहले की तुलना में अधिक खर्च उठाना पड़ेगा।

  • यह नई व्यवस्था राज्य के सभी शहरी निकायों, जैसे नगर निगम, नगर पालिका और नगर परिषद क्षेत्रों में प्रभावी होगी।

  • इसके साथ ही नवीनीकरण प्रक्रिया में डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम और ऑनलाइन निगरानी के प्रावधान भी शामिल किए जा रहे हैं, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित हो सके।

सरकार की दलील
राज्य शहरी विकास विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि फायर एनओसी को लेकर पिछले कुछ वर्षों में ढिलाई बढ़ी थी। कई भवन मालिक न तो समय पर नवीनीकरण करवा रहे थे और न ही पर्याप्त सुरक्षा उपाय अपनाते थे। इसके चलते कई हादसे हुए, जिनमें जानमाल का नुकसान भी हुआ। नए नियमों के तहत शुल्क बढ़ाकर सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि भवन मालिक सुरक्षा मानकों को गंभीरता से लें।

व्यापारियों और बिल्डर्स की चिंता
हालांकि, भवन मालिकों और रियल एस्टेट डेवलपर्स में इस निर्णय को लेकर असंतोष भी देखा जा रहा है। उनका कहना है कि पहले से ही निर्माण लागत और टैक्स की मार झेल रहे व्यापारियों पर यह अतिरिक्त आर्थिक बोझ है।

राजस्थान बिल्डर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कहा, "हम अग्नि सुरक्षा के पक्ष में हैं, लेकिन शुल्क को एकदम दोगुना कर देना उचित नहीं है। सरकार को चरणबद्ध तरीके से यह बदलाव लागू करना चाहिए था, ताकि छोटे और मध्यम वर्गीय भवन मालिकों पर असर कम हो।"

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