
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चुनाव आयोग और देश की जांच एजेंसियों पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि ये संस्थाएं दबाव में काम कर रही हैं। गहलोत ने कहा कि सरकार ने इन संस्थाओं को पूरी तरह से नियंत्रित कर लिया है, और इसका असर लोकतंत्र पर पड़ रहा है। उनके इस बयान ने राजनीतिक हलकों में एक नई बहस छेड़ दी है, खासकर आगामी चुनावों को लेकर।
गहलोत ने मीडिया से बातचीत में कहा, "देश में लोकतंत्र कमजोर हो रहा है और सरकार ने सब एजेंसियों को दबाव में ले लिया है।" उनका आरोप है कि विपक्ष की बात नहीं मानी जा रही और न ही उनकी आवाज को सुना जा रहा है, जिससे लोकतंत्र में संतुलन और न्याय की भावना को नुकसान हो रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि विपक्ष की आवाज दबाई जाती रही, तो इसका न केवल विपक्ष बल्कि पूरे देश पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
बिहार चुनाव पर उठाए सवाल
गहलोत ने विशेष रूप से बिहार चुनाव पर भी संदेह जताया और कहा कि "बिहार में निष्पक्ष चुनाव होने पर संदेह है"। उनके अनुसार, राज्य में चुनाव की प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए विभिन्न राजनीतिक और प्रशासनिक दबाव बनाए जा रहे हैं, जिससे निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं। उनका यह बयान उस समय आया जब बिहार विधानसभा चुनावों को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी था। गहलोत का यह बयान राजनीतिक स्थिति को लेकर गहरी चिंताओं को व्यक्त करता है और चुनावी निष्पक्षता को लेकर एक बड़ा सवाल उठाता है।
लोकतंत्र पर खतरा
गहलोत ने लोकतंत्र की कमजोर होती स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा, "यदि सरकार विपक्ष की बात नहीं सुनेगी और उसे दबाए रखेगी, तो न केवल देश को, बल्कि सरकार को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।" उनके अनुसार, सरकार की कार्यशैली से लोकतंत्र की बुनियादी स्वतंत्रता को खतरा हो सकता है, जो भविष्य में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकता है।
उनके बयान से यह स्पष्ट होता है कि गहलोत विपक्ष की आवाज को दबाने की कोशिशों को लेकर चिंतित हैं और उनका मानना है कि सरकार का यह रवैया लोकतंत्र और न्याय के लिए घातक हो सकता है। अब देखना यह होगा कि इन आरोपों के बाद क्या चुनाव आयोग और अन्य जांच एजेंसियां अपनी कार्यशैली में सुधार करती हैं, और क्या आगामी चुनावों में निष्पक्षता की उम्मीदें बनी रहती हैं।