ऑपरेशन सिन्दूर के बाद PM Modi ने करणी माता मंदिर में ही क्यों की शक्ति पूजा ? 2 मिनट के वीडियो में जाने 600 साल पुराना इतिहास

ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को पहली बार राजस्थान के दौरे पर पहुंचे। वे सुबह करीब साढ़े दस बजे बीकानेर के नाल एयरबेस पहुंचे, जहां राज्यपाल हरिभाई बागड़े, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने उनका स्वागत किया। एयरबेस से प्रधानमंत्री मोदी सीधे देशनोक स्थित करणी माता मंदिर पहुंचे और विधिवत पूजा-अर्चना की। इसके बाद उन्होंने अमृत भारत स्टेशन योजना के तहत देशनोक समेत देशभर के 103 रेलवे स्टेशनों का वर्चुअल उद्घाटन किया। उनके बीकानेर प्रवास का कुल समय करीब तीन घंटे का निर्धारित है।
गलत फैसला
राजस्थान की तपती रेत आज कुछ और ही बयां कर रही है। बीकानेर से करीब 30 किलोमीटर दूर देशनोक का करणी माता मंदिर आज सिर्फ एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि देश के आकर्षण का केंद्र बन गया है। वजह है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यहां खास आगमन। आज जब पीएम मोदी करणी माता के चरणों में शीश झुकाने पहुंचे तो यह सिर्फ पूजा नहीं होगी, यह एक संदेश भी होगा। यह एक नेता द्वारा राष्ट्र की आत्मा से जुड़ने का प्रयास होगा।
राजस्थान में एक मंदिर है। इस मंदिर का नाम करणी माता मंदिर है। इस मंदिर के बारे में कई कहानियां कही जाती हैं, उन्हीं में से एक कहानी हम आपको बता रहे हैं। करणी माता मंदिर में करीब 25000 चूहे हैं। ये चूहे प्रसाद चखते हैं और वही प्रसाद लोगों में बांटा जाता है। मंदिर की इतनी मान्यता है कि यहां भारत ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग दर्शन करने आते हैं। अब बात करते हैं कि इस मंदिर का चूहों से क्या कनेक्शन है। करणी माता मंदिर के 25 हजार चूहों की कहानी जब लोकल18 ने मंदिर के व्यवस्थापक से बात की तो उन्होंने बताया कि करणी माता का अपना एक परिवार है। इस परिवार के लोग सालों से जन्म लेते आ रहे हैं। 4 से 5 हजार लोग इनके परिवार के सदस्य हैं, जिन्हें देववत कहा जाता है। अगर माता के परिवार का कोई सदस्य मर जाता है तो वह चूहे के रूप में इस मंदिर में जन्म लेता है। ये 25000 चूहे जो इस मंदिर में हैं, उनके परिवार के सदस्य हैं। करणी माता का मंदिर रिघुबाई नाम के राजघराने में बनवाया गया था। बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
जब करणी माता ने यमराज से युद्ध किया
गराजेंद्र सिंह बताते हैं कि यह मंदिर 600 साल पुराना है। करणी जी ने इस मंदिर में 100 साल तक तपस्या की थी। उस समय पश्चिमी राजस्थान में अराजकता का माहौल था। इसके बाद माता ने बीकानेर और जोधपुर को बसाया। राजाओं की मदद की। विवाह के बाद करणी माता ने अपने पति को दुर्गा का रूप दिखाया। फिर उनके पति का विवाह करणी माता की छोटी बहन से हुआ। उनके 4 बेटे हुए। एक बार करणी माता की बहन का सबसे छोटा बेटा लाखन ऊंट पर बैठकर मेला देखने आया। यहां वह पानी के अंदर कूद जाता है और मर जाता है।
जैसे ही परिवार को यह खबर मिलती है, वे करणी माता से पुत्र को जन्म देने के लिए कहते हैं। फिर माता बेटे को अपने हाथों में लेकर गुफा को बंद कर देती हैं। इसके बाद उन्होंने यमराज और धर्मराज से अपने बेटे को लौटाने के लिए कहा। लेकिन यमराज ने कहा कि अगर ऐसा हुआ तो धरती कैसे चलेगी। इसके बाद करणी माता ने चूहे का रूप चुना। इसके बाद परिवार का हर सदस्य मरने के बाद मंदिर में चूहा बनकर जन्म लेता है।
चूहों वाला मंदिर क्यों खास है?
करणी माता मंदिर में मौजूद चूहों को काबा कहा जाता है। मंदिर में हर चूहे का अलग स्थान है। चूहे अंदर से बाहर नहीं जाते और बाहर से अंदर नहीं आते। लोग चूहों के बचे हुए प्रसाद को अमृत मानकर खाते हैं। माता के मंदिर का मुख्य द्वार चांदी से बना है। चूहों का प्रसाद भी चांदी की भारी थाली में रखा जाता है। मंदिर परिवार में श्रद्धालु पैर घसीटते हुए चलते हैं, ताकि चूहों को चोट न लगे। अगर कोई चूहा पैरों के नीचे आ जाए तो इसे अशुभ माना जाता है।
करणी माता मंदिर का प्रसाद अलग है
हर मंदिर में प्रसाद मिलता है। लेकिन करणी माता के मंदिर में मिलने वाला प्रसाद अलग है। यहां थाली में रखे प्रसाद को चूहे चखते हैं। इसके बाद इसे लोगों में बांटा जाता है। लोग इसे खाते भी हैं। मंदिर के पुजारी का कहना है कि आज तक कोई भी श्रद्धालु प्रसाद खाने से बीमार नहीं पड़ा है। न ही चूहों से बदबू आती है।
क्या सफ़ेद चूहे देखना शुभ होता है?
इस मंदिर में ज़्यादातर चूहे धूल भरे रंग के होते हैं. कुछ चूहे सफ़ेद रंग के भी होते हैं, जिन्हें देखना शुभ होता है। स्वर्ग और नर्क मंदिर के अंदर हैं। व्यक्ति के कर्मों के अनुसार उसे मंदिर में स्थान मिलता है। जो लोग अच्छे कर्म करते हैं, वे मरने के बाद सफ़ेद काबा के रूप में मंदिर में जन्म लेते हैं।
लोग चांदी के चूहे क्यों दान करते हैं?
आपने सही पढ़ा. करणी माता मंदिर में लोग चांदी के चूहे दान करते हैं। ऐसा तब किया जाता है जब गलती से चूहा मर जाता है। लोग इसे अपशकुन मानते हैं और अपनी गलतियों को सुधारने के लिए चांदी के चूहे दान करते हैं।
करणी माता मंदिर कैसे जा सकते हैं?
बीकानेर से करणी माता मंदिर पहुँचने में आपको लगभग 40 मिनट लगेंगे. आप बीकानेर से टैक्सी या बस लेकर यहाँ पहुँच सकते हैं। किसी दूसरे राज्य से बीकानेर जाने के लिए ट्रेन या बस का विकल्प चुना जा सकता है। दिल्ली के कश्मीरी गेट से बीकानेर के लिए सीधी बस उपलब्ध है. कार से जाने के लिए आप गूगल मैप की मदद ले सकते हैं। मंदिर में दर्शन का समय क्या है? मंदिर सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता है। आप मंदिर के अंदर फोन नहीं ले जा सकते। अगर आप वीडियो बनाना चाहते हैं तो आपको टिकट खरीदना होगा। इसके बाद ही आप मंदिर के अंदर फोन ले जा सकेंगे।