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ओडिशा में बुलडोजर एक्शन पर हाई कोर्ट सख्त, अवैध रूप से ध्वस्तीकरण के लिए तहसीलदार के वेतन से ₹2 लाख वसूलने का दिया आदेश दिया

ओडिशा हाई कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई के एक विवादित मामले में बेहद कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह प्रभावित पक्ष को दस लाख रुपये का मुआवजा दे। इसके अलावा, इसमें से दो लाख रुपये की राशि तहसीलदार की सैलरी से काटने का निर्देश भी दिया गया है.............
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ओडिशा हाई कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई के एक विवादित मामले में बेहद कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह प्रभावित पक्ष को दस लाख रुपये का मुआवजा दे। इसके अलावा, इसमें से दो लाख रुपये की राशि तहसीलदार की सैलरी से काटने का निर्देश भी दिया गया है। इस फैसले से साफ होता है कि न्यायालय बुलडोजर के नाम पर की जा रही गैरकानूनी और अनुचित कार्रवाई को लेकर बिल्कुल भी सहनशील नहीं है। अदालत ने कहा है कि बुलडोजर कार्रवाई का न्याय का जो पैटर्न सामने आ रहा है, वह बेहद परेशान करने वाला है और इसकी गंभीरता को समझना होगा।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट भी बुलडोजर कार्रवाई को लेकर सख्त दिशा-निर्देश लागू कर चुका है ताकि किसी भी प्रकार की मनमानी और बिना उचित प्रक्रिया के कार्रवाई न हो सके। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार स्पष्ट किया है कि किसी की संपत्ति को न्यायिक आदेश या बिना उचित सुनवाई के नुकसान पहुंचाना अनुचित है।

मामले का पृष्ठभूमि और आरोप

इस मामले की शुरुआत एक सामुदायिक केंद्र के कारण हुई, जो कि गोचर भूमि पर बनाया गया था। 2016-18 के दौरान ‘अमा गांव अमा विकास योजना’ और विधायक निधि के तहत इसका पुनर्निर्माण हुआ था। इस केंद्र का उपयोग सार्वजनिक कल्याण के कार्यक्रमों के लिए किया जाता था। हालांकि, आरोप यह था कि यह भूमि गोचर भूमि के रूप में वर्गीकृत थी, लेकिन अधिकारियों ने कभी भी इस बात पर आपत्ति नहीं जताई कि इस जमीन पर सामुदायिक केंद्र बना है। गांव के लोग भी इस जमीन के बदले जमीन लेने या देने के लिए तैयार थे, लेकिन इसके बावजूद कार्रवाई हुई।

जुलाई 2024 में OPLE Act के तहत इस अतिक्रमण को हटाने के लिए नोटिस जारी किया गया, जिसे प्रभावित पक्ष ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट ने कहा कि याचिका OPLE Act की धारा 8 ए के तहत दायर की जाए। इसके बाद जब याचिका खारिज कर दी गई, तो प्रभावित पक्ष ने सब कलेक्टर के सामने अपील की।

हाई कोर्ट का आदेश और प्रशासन की अवहेलना

29 नवंबर 2024 को हाई कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए कि अपील लंबित रहने तक किसी भी प्रकार की बेदखली की कार्रवाई नहीं की जाए। इसके बावजूद 5 दिसंबर 2024 को एक और बेदखली नोटिस जारी किया गया। प्रभावित पक्ष ने इसे पुनः हाई कोर्ट में चुनौती दी। 13 दिसंबर 2024 को हाई कोर्ट ने अपना रुख दोहराया, लेकिन उसी दिन सब कलेक्टर ने मामले की सुनवाई की और आदेश सुरक्षित रखा।

हैरानी की बात यह रही कि उसी दिन शाम 5:15 बजे बेदखली का नोटिस चिपका दिया गया और कहा गया कि अगले दिन सुबह इसे ध्वस्त कर दिया जाएगा। 14 दिसंबर 2024 को सुबह 10 बजे सामुदायिक केंद्र को गिरा दिया गया। इसके बाद प्रभावित पक्ष ने अदालत में अवमानना याचिका दायर की।

अदालत का कड़ा रुख और संवैधानिक जिम्मेदारी

अदालत ने कहा कि इस कार्रवाई में संवैधानिक प्रक्रिया की उपेक्षा की गई है, जबकि मामला विचाराधीन था। अदालत ने स्पष्ट किया कि तहसीलदार के ऊपर संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वह कानून का पालन करे और न्यायालय के आदेशों का सम्मान करे।

जस्टिस पाणिग्रही ने अपने आदेश में कहा, “सार्वजनिक धन से बने और दशकों तक बिना किसी विरोध के चल रहे इस प्रकार के ढांचे को बिना कानूनी प्रक्रिया के मिनटों में मलबे में बदल देना केवल एक निर्माण को तोड़ना नहीं है, बल्कि यह उन नागरिकों की गरिमा का अपमान है, जिन्होंने न्यायालय के सहारे सुरक्षा मांगी थी। कार्यपालिका को केवल आदेश लागू करने वाला संस्था नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि अदालत के आदेशों का सम्मान करते हुए रुकने की भी अपेक्षा की जाती है। लेकिन इस मामले में प्रशासन ने जानबूझकर अदालत के आदेशों को नजरअंदाज किया।”

मुआवजा और कार्रवाई

अदालत ने इस पूरे घटनाक्रम को देखते हुए प्रभावित पक्ष को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि इस राशि में से 2 लाख रुपये की कटौती तहसीलदार की वेतन से की जाए, जो इस कार्रवाई के दौरान जिम्मेदार था। इसके साथ ही तहसीलदार के खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी शुरू की जाएगी ताकि भविष्य में ऐसी कोई भी मनमानी न हो।

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