क्या सच में मांगलिक दोष मिटाने के लिए Sonam ने करवाई राजा की हत्या? जानिए कुंडली का यह दोष कितना है मान्य

भारत के पारंपरिक हिन्दू समाज में विवाह न केवल दो व्यक्तियों का मिलन होता है, बल्कि यह दो परिवारों का सामाजिक और आध्यात्मिक गठबंधन भी माना जाता है। इसी कारण, विवाह से पहले वर और कन्या की कुंडली का मिलान एक आवश्यक प्रक्रिया होती है। इस प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है मांगलिक दोष — एक ऐसा ज्योतिषीय तत्व जिसे लेकर समाज में आज भी अनेक भ्रांतियां और चिंता बनी हुई हैं। विशेषकर जब कन्या की कुंडली में यह दोष पाया जाता है, तो विवाह में अनेक अड़चनें उत्पन्न होती हैं।
क्या है मांगलिक दोष?
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र के अनुसार, मांगलिक दोष तब उत्पन्न होता है जब मंगल ग्रह व्यक्ति की जन्म कुंडली के पहले, चौथे, सातवें, आठवें या बारहवें भाव में स्थित होता है। इन भावों में मंगल की उपस्थिति को अशुभ माना जाता है क्योंकि यह व्यक्ति के जीवन में संघर्ष, विवाद, दुर्घटनाएं और मानसिक तनाव ला सकता है। विशेष रूप से सातवां भाव विवाह से जुड़ा होता है, और इसमें मंगल की उपस्थिति विवाह जीवन में अशांति, झगड़े, और कभी-कभी तलाक तक की स्थितियाँ पैदा कर सकती है।
डॉ. मिश्र आगे बताते हैं कि मंगल ग्रह एक तामसिक ग्रह है, जो शक्ति, पराक्रम और उत्साह का प्रतीक है। यदि यह अशुभ हो जाए, तो व्यक्ति का जीवन ऊर्जा हीन, असंतुलित और संघर्षपूर्ण बन सकता है। कुछ विशेष स्थितियों में मंगल व्यक्ति की कामवासना को भी प्रभावित करता है, जिससे वैवाहिक जीवन में असंतुलन आ सकता है। इसके अतिरिक्त, मंगल दुर्घटनाओं और मृत्यु का भी कारक माना जाता है।
क्यों होती है विवाह में परेशानी?
समाज में मान्यता है कि अगर मांगलिक दोष वाले व्यक्ति की शादी किसी गैर मांगलिक से कर दी जाए, तो उनके वैवाहिक जीवन में गंभीर समस्याएं आ सकती हैं। इनमें पति-पत्नी के बीच आपसी कलह, मानसिक तनाव, अलगाव, और यहां तक कि किसी एक की अकाल मृत्यु तक की संभावना जताई जाती है। विशेषकर कन्या की कुंडली में यदि यह दोष पाया जाए, तो परिवार में चिंता और डर का माहौल बन जाता है। बहुत से मामलों में इस कारण विवाह में विलंब होता है या प्रस्ताव ही अस्वीकार कर दिए जाते हैं।
डॉ. मिश्र इस बात पर जोर देते हैं कि कुंडली मिलान केवल नाम से नहीं, बल्कि जन्म तिथि, समय और स्थान के अनुसार मूल जन्म कुंडली के आधार पर करना चाहिए। कई बार लोग केवल नाम मिलान से संतुष्ट हो जाते हैं, जो कि एक खतरनाक भूल हो सकती है।
समाधान क्या है?
सबसे पहला और महत्वपूर्ण उपाय यही है कि यदि वर और कन्या दोनों मंगली हों, तो विवाह में कोई बाधा नहीं मानी जाती। ऐसे विवाहों में दोनों की कुंडलियों में दोष एक-दूसरे को संतुलित कर देते हैं और जीवन सुखमय रह सकता है। लेकिन यदि एक मांगलिक और एक गैर मांगलिक के बीच विवाह हो, तो इसे लेकर विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। ऐसी स्थितियों में कई ज्योतिषीय उपाय सुझाए जाते हैं जैसे मंगल शांति पूजा, कुंभ विवाह (कन्या का प्रतीकात्मक विवाह पहले पीपल के पेड़ या किसी देवता से), और विशेष मुहूर्त में विवाह करना।
डॉ. मिश्र यह भी बताते हैं कि विवाह का मुहूर्त भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। यदि विवाह किसी अशुभ काल में कर लिया जाए, तो भले ही कुंडली में दोष न हो, फिर भी वैवाहिक जीवन में समस्याएं आ सकती हैं। इसलिए विवाह का शुभ मुहूर्त निकालकर, वैदिक रीति से फेरे संपन्न कराना चाहिए।
क्या कोई अपवाद संभव है?
आज के आधुनिक समय में कई लोग इन मान्यताओं को अंधविश्वास मानते हैं और मांगलिक दोष की परवाह किए बिना विवाह करते हैं। कई बार ऐसे विवाह सफल भी होते हैं। परंतु डॉ. मिश्र जैसे पारंपरिक ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि मांगलिक दोष का असर नकारना खतरनाक हो सकता है, विशेषकर तब जब विवाह जीवन में पहले से ही तनाव और असंतुलन मौजूद हो। इसलिए जहां संभव हो, विवाह से पहले कुंडली का गहन विश्लेषण कराना और उचित उपाय करना समझदारी का परिचायक है।