देवी अहिल्या 200 साल बाद भी पूज्य क्यों, जब महिलाएं घरों में थीं, उन्होंने संभाला राजपाट

रानी अहिल्याबाई ने बहुत कठिन समय में होलकर राजवंश का शासन संभाला था। किसी ने भी किसी महिला को राज्य का मुखिया बनाना उचित नहीं समझा। इसका कारण यह था कि समाज और जनता महिलाओं को पुरुषों से कमतर समझती थी। अहिल्याबाई ने राज्य का दायित्व इस तरह निभाया कि उनका नाम आज तक याद किया जाता है। अहिल्याबाई की मृत्यु 1795 में हुई, इस प्रकार अहिल्याबाई के शासन काल को समाप्त हुए 230 वर्ष हो चुके हैं, फिर भी उनकी कार्यशैली और परोपकारी कार्यों को आज तक याद किया जाता है।
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कौटिल्य ने कहा था - 'राजा का सुख उसकी प्रजा के सुख में निहित है और उसका हित उसकी प्रजा के कल्याण में निहित है। उसका सुख उसके प्रिय राजा के सुख में नहीं, बल्कि उसकी प्रजा के सुख में निहित है।' भारत में अनेक राजा प्रजा से मनमाना कर वसूल कर राजकोष भर रहे थे, ऐसे समय में देवी अहिल्या के राज्य की प्रजा पूर्ण सुख-शांति से रह रही थी। वह अपनी प्रजा को समान भाव से देखती थीं
अहिल्याबाई अपनी प्रजा को समान भाव से देखती थीं। अहिल्याबाई शासन के साथ-साथ धार्मिक भी थीं, इसलिए वह नियमित रूप से पूजा-पाठ करती थीं। देवी अहिल्याबाई राज्य के सभी धर्मों को समान रूप से देखती थीं और उनके हित में निर्णय लेती थीं। राज्य के अधिकारी मनमानी नहीं कर सकते थे, वह उन पर कड़ी नज़र रखती थीं। उनके अधीनस्थ उनसे डरते थे। किसी भी अधिकारी को मनमानी करने की इजाज़त नहीं थी। अगर कोई अधिकारी मनमानी करता हुआ पाया जाता या कोई शिकायत मिलती तो वह उसे दण्डित भी करती थीं।
महिलाओं के प्रति वह उदार थीं
देवी अहिल्याबाई महिलाओं के प्रति बहुत उदार थीं। उन्हें लगता था कि महिलाओं की आवाज़ घर की चारदीवारी से बाहर आना बहुत मुश्किल है, ऐसे में उनके लिए पूरा न्याय पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। जब उनके राज्य की विधवाओं ने राजकोष में अपना धन देने पर ज़ोर दिया, तो देवी अहिल्याबाई ने यह धन स्वीकार नहीं किया, बल्कि उन विधवाओं के नाम पर सड़कें, झीलें, तालाब, मंदिर या घाट बनवाए। उन्होंने निःसंतान विधवाओं की संपत्ति जब्त कर राजकोष में जोड़ने की परंपरा बंद करवाई। विधवाओं को पुत्र गोद लेने में बहुत कठिनाई होती थी। राज्य के अधिकारी गोद लेने में कानूनी अड़चनें डालते थे, लेकिन अहिल्याबाई ने गोद लेने के नियमों को सरल बनाया और प्रक्रिया में बाधा डालने वालों को दंडित किया।