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जल संरक्षण हमारी संस्कृति और परंपरा का मूल आधार: रामचरितमानस से ऋग्वेद तक फैला संदेश

जल संरक्षण हमारी संस्कृति और परंपरा का मूल आधार: रामचरितमानस से ऋग्वेद तक फैला संदेश

यह पंक्ति केवल काव्य नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना में जल के महत्व का जीवंत चित्रण है। जल न केवल जीवन का आधार है, बल्कि भारतीय सभ्यता की आत्मा भी है।

🌊 पंचतत्वों में से एक: जल का महत्व

जल पंचमहाभूतों में से एक है — पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। इन तत्वों से ही मानव शरीर और संपूर्ण सृष्टि का निर्माण हुआ है। जल के बिना जीवन, संस्कृति, कृषि, पर्यावरण — कुछ भी संभव नहीं। यही कारण है कि भारतीय धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में जल को देवतुल्य माना गया है।

📜 ऋग्वेद और पुरातन ग्रंथों में जल का आदर

ऋग्वेद की ऋचाओं में जल को "आपः" कहा गया है — जीवनदायिनी, शुद्ध करने वाली और समृद्धि देने वाली।
ऋग्वेद (10.9) में जल से प्रार्थना की गई है:
"आपो हि ष्ठा मयोभुवस्ता न ऊर्जे दधातन ।"
(हे जल! तुम आनंद देने वाले हो, तुम हमें ऊर्जा और शक्ति प्रदान करो।)

यह स्पष्ट करता है कि जल संरक्षण कोई नया विचार नहीं, बल्कि हजारों वर्षों से भारतीय ज्ञान परंपरा में इसका महत्वपूर्ण स्थान रहा है।

📖 रामायण और महाभारत में प्रकृति संरक्षण

रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों में भी प्रकृति और जल स्रोतों के संरक्षण की झलक मिलती है।
राम वनवास के समय जलाशयों की सफाई और संरक्षण करते थे।
भीम और युधिष्ठिर जैसे पात्र जल की शुचिता को धर्म का हिस्सा मानते थे।

यह सब दिखाता है कि प्राकृतिक संसाधनों की देखरेख भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रही है।

🏞️ परंपरा में संरक्षण की भावना

भारतीय समाज में जल को सम्मान देने की परंपरा रही है —

  • कुओं, बावड़ियों, तालाबों की पूजा,

  • जल स्रोतों के पास धार्मिक आयोजन,

  • और विवाह या जन्मोत्सव जैसे संस्कारों में जल से शुद्धिकरण।

यह सब दर्शाता है कि हमारे संस्कार जल संरक्षण की भावना से गहरे जुड़े हैं।

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